Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 424
________________ पृष्ठ 29 ५ ११ १४ "" १६ ३२ ३३ ३८ ४२ 33 M ४३ "" : ८० ५६ ६१ ६३ ७० ८७ ८८ ९५ ११० ११२ १३३ १४३ पंक्ति १६ २७ २६ ५ १२ Jain Education International १३ ७ २० २१ ११ २ ४ २२-२३ ५ ११ १८ " ८ ७ ५ 33 १६ v ४ २१ शुद्धि-पत्र अशुद्ध दिशामें वैजयन्त ६ कोश, ७५३२ नदीपरिवार शून्यको अपवर्तित कर जीवाओंका 웃음 बलही मडव २४९३ भोजन दसमजिदे सचाहिं कछाहि गवंता पादरक्खा संयुक्त, श्री देवीके... श्री देवी की जिणपडिद विमानवासी देवों में उसके वर्ग में अवसे अड्डे व दिव मणिमालाविष्फुरंत जल्लरि विमानछद - रयणसंवैछष्णा संखेणेव य उससे आगे के भाग में शुद्ध दिशामें अपराजित ३ कोश, १५३२ ६४ नदियोंका परिवार समान शून्योंको कम कर जीवाओंकी चूलिकाका बलही मंडव २४९३२ रु योजन दसभजिदे सत्तहि कच्छा हिं गनंता पाद [याद] रक्खा संयुक्त ऐसे चार तेजस्वी देव श्री देवीके आत्मरक्षक हैं जो बहुत प्रकारके योद्धाओंसे सहित होकर श्री देवीकी जिणपडिम For Private & Personal Use Only विमानवासी अर्थात् देवोंमें उसके आधेके वर्गमें अवसेसेसु अट्टेव दिवड्ढ मणिमाला विष्फुरंत झल्लरि विमानछन्द - रयणभवणसंछण्णा संखेवेण य उसके पश्चिम भागमें www.jainelibrary.org

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