Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 430
________________ गाथानुक्रमणिका १३० ३३६ ३४१ एक्केक्कम्मि दम्मि दु एक्केक्कम्मि य दंते एक्केक्कवरणगाणं एक्केक्कविहेसु तहा एक्केक्कस्स विमाणस्स एक्केक्काण दहाणं एक्केक्काणं अंतर ४१ / एदेण कारणेण २५७ । एदे पंचविमाणा ६७ / एदे विमाणपडला ७२ | एदेसिं चंदाणं ३४३ | एदेसिं पल्लाणं १४४ | एदेसु लोगवाला | एदेसु विणिहिट्ठो १२० एदे सोलस दीवा २४ एदेहि बाहिरेहि य एमेव दु सेसाणं एय दुय चदुर अठ्ठ य एयं च सयसहस्सं | एयं च सयसहस्सा سد ہ ہ ہ ہ ہ ہ ہ ہ ہ س م س ३०५ १७३ १६३ ८२ १३० १८ १६७ १२८ १२६ एक्केक्का ताणं एक्केक्के पासादे एक्को य चित्तकूडो एगठ्ठ णव य सत्त य एगठिभाग जोयणस्स एगणवसत्तछच्चदुएगत्तरि बिरिणसदा एगत्तरि य सहस्सा एगसहस्सं अठुत्तरं एगं च सयसहस्सं एगं बाणउदी च य एगाहि बीहिं तीहि य एगुत्तरणवयसया एगेगअट्ठवीसा एगेगकमलकुसुमा एगेगकमलकुसुमे एगेगकमलसंडे एगेगम्मि य गच्छे एगेगसिलापट्टे एगोरुगवेसाणिगएगोरुगा गुहाए एगोरुगा य लंगोलिगा एदम्मि कालसमये एदिम्म मज्मभागे एदम्हि अंतरम्हि दु a com o me e o o o o o x oc a v w woco no ovom man m n o wa x m एयाओ देवीओ एयारसट्ठणवणव एरावणो त्ति णामेण एलातमालचंदणएलामिरीइणिवहो एवं अवसेसाणं ه ه ه ه ه ه ه م سه س ११४ २६६ ३६ २८८ ७६ ४८ ४५ १४५ २२१ ११२ ११ ६६ १४४ १५ २६० २६१ एवं आगंतणं ૨૫૬ एवं आदिश्चस्स वि २५६ एवं उत्तमभवणा एवं एसो कालो ५१ एवं कमेण चंदा ५८ एवं काऊण वसं एवं चेव दुणेया १७६ एवं छिंदणभिंदण१६८ एवं जे जिणभवणा | एवं जोदिसपडल३४ | एवं णागाणीया १३५ एवं तु भद्दसाले १०६ एवं तु महड्ढीओ २१२ | एवं तुरयाणीया ३३ १२१ ر ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه १७६ ६३ एदाओ णामाश्रो एदाओ देवीयो एदे एक्कत्तीसं ५ . ११ ४. ६३ २१२ ७२ २६५ १६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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