Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 401
________________ १३२ ] जंबूदीपणती [ १२.८७ - एगेगभट्ठवीसा अट्ठासीदा तदेवे रूवेहिं । गुणिदे चंदाइच्चा णक्खता गहगणा होति ॥ ८७ छावठि च सहस्सा' णव चैव सया पणहत्तार होंति । गुणगारा णायन्वा ताराण कोडकोडीओ ॥ ८८ पंचेच य रासीओ मेळावेदूण तद्द य एयरथं । जोदिससुरार्णे दध्वं उप्पण्णं होदि तह य णायन् ॥ ४९ 'गुणगारभागहारा ओवहेदून तह य अवसेसं । जोदिसगणाण दग्वं' होदि पुणो तह य णायब्वा ॥ ९० पण्णट्ठिसहस्सेहि य छत्तीसेहि य सदेहिं पंचेहिं । पदरंगुळेहि भजिदे जगपदरं होदि उप्पण्णं ॥ ९१ उदी ससंसदेद्दि य धरणीदो सन्वद्देट्टिमा तारा । णवसु सदेसु य उद्धं जे तारा सम्बउवरिमिया ॥ ९२ एवं जोदिस पडलब्बेहुलियं" दस सदं चियाणाहि । तिरियं लोगक्खेत्तं लोगंत घणोदधिं पुट्ठा ॥ ९३ णउदुत्तरसत्तसर्वं दस सीदी चदुदुग तियचउक्कं । तारारविससिरिक्खा बुहभग्गव [गुरु] यंगिरारसणी " ॥ ९४ चंदस्य सदसदस्सं सहस्स रविण सदं च सुक्कस्स । वासाहिएहि पल्लं लेह वरिसणामस्स ॥ ॥ ९५ सेसाणं तु गाणं पलद्धं आउगं मुणेदग्वा । ताराणं तु जद्दण्णं पादन्दं पादमुक्करसं ॥ ९६ गुणकारों से गुणित करे ।। ८६ ।। उक्त पांच गुणकारोंमें एक ( चन्द्र ), एक (सूर्य), अट्ठाईस (नक्षत्र) तथा अठासी ( ग्रह ) अंकोंसे गुणित करनेपर चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र एवं ग्रहसमूहका प्रमाण होता है || ८७ ॥ छ्यासठ हजार नौ सौ पचत्तर कोड़ाकोड़ि ( ६६९७५०००००००००००००० ) यह ताराओंका गुणकार जानना चाहिये ॥ ८८ ॥ तथा इन पांचों राशियों को एकत्र मिलाने पर समस्त ज्योतिषी देवोंका द्रव्य होता है, ऐसा जानना चाहिये ॥ ८९ ॥ तथा गुणकार और भागहारका अपवर्तन करके अवशेष ज्योतिर्गणोंका द्रव्य होता है, ऐसा जानना चाहिये ॥ ९० ॥ पैंसठ हजार पांच सौ छत्तीस प्रतरांगुलोंका जगप्रतरमें भाग देनेपर समस्त ज्योतिषी देवोंका प्रमाण उत्पन्न होता है ॥ ९१ ॥ पृथिवीसे सात सौ नब्बे [ योजन ऊपर जाकर ]- सबसे नीचे तारा स्थित हैं । नौ सौ योजन ऊपर जाकर जो तारा स्थित हैं वे सबसे ऊपर हैं ||९२ || इस प्रकार ज्योतिषपटलका बाइल्य एक सौ दश योजन प्रमाण जानना चाहिये । तिर्यग्लोक क्षेत्र लोकान्तमें घनोदधि वातत्रलय से स्पृष्ट है ॥ ९३ ॥ चित्रा पृथिवीसे सात सौ नबै योजन ऊपर जाकर तारा, इससे दश योजन ऊपर सूर्य, उससे अस्सी योजन ऊपर चन्द्र, उससे चार योजन ऊपर नक्षत्र, उससे चार योजन ऊपर बुध, उससे तीन योजन ऊपर शुक्र, उससे तीन योजन ऊपर [गुरु], उससे तीन योजन ऊपर अंगारक (मंगल) और उससे तीन योजन ऊपर शनि स्थित है ॥ ९४ ॥ उत्कृष्ट आयु चन्द्रकी एक लाख वर्षों से अधिक एक पल्य, सूर्यकी एक हजार वर्षेसे अधिक एक पल्य, शुक्रकी सौ वर्षोंसे अधिक एक पल्य, बृहस्पतिकी पूरा एक पल्य तथा शेष ग्रहोंकी अर्ध पल्य प्रमाण जानना चाहिये । ताराओंकी जघन्य आयु • पादार्ध अर्थात् पल्यके आठवें भाग ( 2 ) और उत्कृष्ट पात्र (3) पल्य प्रमाण जानना चाहिये । १ क तहेय, प तहेयं, व य तहेयं. ४ क प ब णवयसया ३ उश पणत्तरी, क पण्तहत्तर, पब पहतरि ४ प ब सुराणा ५ क दव्वं होंति गुणो तहय णायव्वा, श दव्वं होदि पुणो तह य णायव्वा. ६ कप्रतौ नोपलभ्यते गाथेयम् (९० इतीयं गाथासंख्याप्यत्र नोपलभ्यते). ७ प ब भागहारं उवट्ठेदूण. ८ उ जोदिसगणा दिव्यं, श जोदिसगणा दव्वं. ९ क जा. १० उ कप बश पडलं वेहुलियं. ११ उ. दुहअंगियारमणी, श दुई मंगून अंगियारमणी (कप्रतायेतस्या ९४ तमगाथाया अग्रे तारा यो. ७९० रवि ८० शि१० नक्षत्र ४ ४ ३ ३ ३ : शनि ३ " इत्यधिकः पाठोऽस्ति ) - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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