Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 404
________________ [तेरसमो उद्देसो] पासजिणिदं पणमिय पण?षणधादिकम्ममलपडई। परमेट्ठिभासिदत्वं पमाणमेदं पवक्सामि दुविधो य होदि कालो ववहारो तह य परमत्यो । ववहार मणुयलोए परमत्यो सम्बलोयम्मि । संखेज्जमसंखेज भर्णतयं तह य हदि तिवियप्पो । भाणुगदीए दिट्ठो समासदो कम्मभूमिम्मि ॥३ कालो परमणिरूखो भविभागी विजाण समभो त्ति । सुहुमो अमुत्तिगुरुगलहुवत्तणालवणो कालो . भावलि असंखसमया संखज्जावलिसमूह उस्सासो । सत्तुस्सासो थोवो सत्तस्थोवा लवो मणिदो ॥५ भट्टतीसद्धका णाली बेणालिया महत्तं तु। एयसमयेणहीणं मिण्णमुहत्तं तदो सेसं॥ तीसमुहुरा दिवसं तीसं विवसाणि मासमेक्को दु । मासाणि उडू णं तिणि अयणमेकको दु.. वसं वेभयणं पुण पंच य वस्साणि होति जुगमेगं । विपिणजुगं दसवरसं दसगुणिदं होदि वस्ससद ॥ घस्ससदं सगुणिदं वस्ससहस्सं तु होदि परिमाणं | वस्ससहस्सं दसगुण दसवस्ससहस्समिदि जागे । दसवस्ससहस्साणि य दसगुणिय वस्ससदसहस्सं तु । एत्तो मंगपमाणं वोच्छमि य वस्सगणणार || द घातिया कर्म रूप मलके समूहको नष्ट कर देनेवाले पार्थ जिनेन्द्रको प्रणाम करके इन्त परमेष्ठीके द्वारा उपदिष्ट प्रमाणभेदका कथन करते हैं ॥ १॥ व्यवहार और परयो भेदसे काल दो प्रकारका है। इनमें व्यवहारकाल मनुष्यलोकमें और परमार्थकाल सर्व लो पाया जाता है ॥ २ ॥ संख्येय, असंख्येय और अनन्त इस प्रकारसे कालके तीन भेद हैं। यह काल कर्म भूमिमें संक्षेपसे सूर्यगतिके अनुसार देखा जाता है ॥३॥ जो काल परमनिरुव (परमनिकृष्ट ) अर्थात् विभागके अयोग्य अविभागी है उसे समय जानना चाहिये । यह काल सूक्ष्म, अमूर्तिक व अगुरुग्घु गुणसे युक्त होता हुआ वर्तना स्वरूप है ॥४॥ असंख्यात समयों की एक आवली, संख्यात आवलियोंके समूह रूप उच्छ्वास, सात उच्छ्वासोका स्तोक, और सात स्तोकोंका एक लव कहा गया है ॥ ५॥ सादे अड़तीस लवोंकी नाली, दो नालियोंका मुहूर्त, और एक समयसे हीन शेष मुहूर्तको भिन्नमुहूर्त कहते हैं ॥ ६॥ तीस मुहतोंका दिन, तीस दिनों का एक मास, दो माकी ऋतु, और तीन ऋतुओंका एक अयन होता है ॥ ७॥ दो अयनोंका वर्ष, पांच वर्षों का एक युग, दो युग प्रमाण दश वर्ष और दश वर्षोंको दशसे गुणित करनेपर सौ वर्ष होते हैं ॥८॥ सौ वर्षोंको दशसे गुणित करनेपर सहस्र वर्ष और सहस्र वर्षोंको दशसे गुणित करनेपर दश सहस्र वर्षोंका प्रमाण जामना चाहिये ॥९॥ दशगुणित दशवर्षसहस्रका वर्षशतसहस्र (एक लाख वर्ष) होता है। आगे वर्षगणनाले अंगप्रमाण १श मासति परमणे पवक्खामि. २ क प व तह य होइ परमरथो. ३ उ शकाले. ४ पव माणगी. ५ उश अमोति. ६ उ क प व श अगरेग. ७ व वक्षणाल खेमो कालो, शवत्तगळखणो काले. ८ उ बदचीसदळवा, श अट्ठीसदलव. ९ ड श बस्समदं. १.श सशणियसबस्ससहस्सं दस जाणे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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