Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 407
________________ २३८ जंबूदीवपग्णची [१३. ११दीवोदधिसकाणं जिणभवणाणं णदीण कुंगण । बसादीण पमाणं पमाण तह गुले विट्ठा ॥३॥ छाह गुलेहिं पादो वेपादेहि य तहा विहत्यी दु। बेहि विहस्थीहि तहा हस्थो पुण होइ णायग्बा ॥ १९ बेहत्येहि य किक्खें बेकिक्खूहि य हवे तहा दंगे । दरवणुज्जुगणाडी भक्खं मुसलं च अदुरदणी ॥ १ बेदंडसहस्सेहि य गाउदमेगं तु होइ णाययों । चटगाउदेहि य तहा जोयणमेगं विनिषिद्धं ॥३॥ जंजोयणविस्थिणं तं विगुणं परिरएण सविससं । तं जोयणमुग्विद्धं पलं पलिदोवमं णाम ॥३५ ववहारुद्धारदा पल्ला तिण्णव होति णायव्वा । संखा दीवसमुद्दा कम्महिदी वणिया तदिए ॥ ३॥ एगाहिंबीहिंतीहि य उक्कस्सं जाव सत्तरताणं | संणद्धं संणिचिर्द" भरिदं बालग्गकोडीहि ॥३. वस्ससदे घस्ससदे एक्केक्कं भवहडस जो कालो । सो कालो णायवो णियमा एक्कस्स पलस्स ॥ ३८ यवहारे जं रोमं तं छिण्णमसंखकोरिसमयेहि । 'उद्धारे ते रोमा दीवसमुद्दा दु पदेण ॥ १९ उद्धारे जं रामं तं छिण्ण सदेगवस्ससमयेहिं । अद्धारे ते रोमों कम्मट्टिदी वणिया तदिए ॥ .. नदी, कुण्ड तथा क्षेत्रादिकोंका प्रमाण प्रमाणांगुलसे निर्दिष्ट किया गया है |॥ ३१॥ छह अंगुलोंसे एक पाद, दो पादोंसे एक वितस्ति तथा दो वितस्तियोंसे एक हाथ होता है; ऐसा जानना चाहिये ॥३२॥ दे। हाथोंसे एक किकु हरिकु और दो किष्कुओंसे एक दण्ड होता है । दण्ड, धनुष, युग, नाली, अक्ष और मूल, ये सब वार रनि प्रमाण होते हैं । इसीलिये इन सबको धनुषके पर्याय नाम जानना चाहिये ॥३ ॥ दो हजार दण्डोंसे एक गव्यू नि कोश) होती है, ऐसा जानना चाहिये । तथा चार गव्यूलियोंसे एक योजन निर्दिष्ट किया गया है ॥ ३४ ॥ जो एक योजन विस्तीर्ण, विस्तारकी अपेक्ष कुछ अधिक तिगुणी परिधिसे संयुक्त तथा एक योजन उद्वेध ( अवगाह ) से युक्त हो एसे उस गर्तविशेषका नाम पल्य व पल्योपम है ॥३५ ।। व्यवहार, उद्धार और अद्धा, इस प्रकार पत्य तीन प्रकारके होते हैं । इनमें व्यवहारपल्य उद्धारपल्यादि रूप संख्याका कारण है। उद्धारपल्यसे द्वीप-समुद्रों की संख्या तथा तृतीय अद्धापत्यसे कर्मोंकी स्थिति वर्णित है ॥ ३६॥ एक दिन, दो दिन, तीन दिन अथवा उत्कर्षसे सात दिन तकके [ मैदेके ) करोड़ों बालाग्रोसे उपर्युक्त पत्य (गड्ढा ) को अत्यन्त सघन रूपमें भरना चाहिये ॥ ३७ ॥ फिर उसमें से सौ सौ वर्षमें एक एक बालाग्रके अपहृत करनेमें ( निकालनमें ) जो काल लगे वह काल नियमसे एक पल्य प्रमाण जानना चाहिये ॥ ३८ ॥ व्यवहार पत्यमें जितने रोम होते हैं उनको असंख्यात करोड़ वर्षोंके समयोंसे खण्डित करनेपर जो राशि प्राप्त हो उतना उद्धार पत्यके रोमोंका प्रमाण होता है । इससे द्वीप-समुद्रोंका प्रमाण जाना जाता है ॥ ३९ ॥ उद्धार पत्यमें जो रोमप्रमाण है उसे एक सौ वर्षोंके समयोंसे खण्डित करनेपर जो प्राप्त हो उतने रोम अद्धार पत्यमें होते हैं । इस तृतीय पल्यसे कमौकी स्थिति वर्णित है ॥ १०॥ इन दश कोडाकाड़ी पल्यों के उश पम्मण. २ क प ब किं. 1 उश वेकवखूहि, क प व वेकिसूहि. ४ उ होदि आगाहि, पब होदिणिविहा. ५ उश सणिचंद. ६क अहवतस्स, पब अवहस्स. ७ उश विष्णमसंखवस्सकोडि. चपर्दभागोऽयमस्या गायाया नोपळम्यते उपतो. ९ड अदोर तो रेमा, प सारे रोमा, शबारे वारे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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