Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 420
________________ -१३.१५.] तेरसमो उदेसो भापरियपरंपरेण प गंधत्वचेव भाग सम्म । उवसंघरितु' लिहिय समासदो होह णायम्वं ॥ १४२ गाणाणरवहमशिदो विगयभमो संगभंगउम्मुक्को | सम्मईसणसुद्धो संजमतवसीलसंपण्णो ॥१५३ जिणवरवयणविणिग्गयपरमागमदेसमो महासत्तो। सिरिणिको गुणसहिमो सिरिविजयगुरु त्ति विक्खामो॥ सोऊण तस्स पासे जिणवयणविणिग्गय अमदभूदं । रइदं किंचुद्देस' भस्थपदं तह में लद्धणं ॥ १४५ पाउरो इसुगारणगी मंदरसेला हवंति पंचेव । सामलिदुमा य पंच य जंबूरुक्खादिया पंच ॥१४॥ विंसदि अमगणगा पुण णाभिगिरी तेत्तिया समुट्टिा । विसदि देवारण्णा तीसेव य भोगभूमी दु१३ ॥ १७ कुलपब्वदा वि तीसा चालीसा दिसगया गाणेया। सही विभंगसरिया महाणदीहति सदलीया ॥ पउमवहादि य तीसी बक्सारणगा हवंति सयमेगं । सत्तार सय वेदड्ढा रिसभगिरी तेत्तिया चेव ॥ १४९ सदलि सय राजधाणी संग तेत्तिया समुट्ठिा । चचारिसया कुंडा पण्णासा होति णायन्वा ॥ १५० उक्त समीचीन ग्रन्थार्थको ही उपसंहार कर यहां संक्षेपसे लिखा गया है, ऐसा जानना चाहिये ॥१२॥ नाना नरपतियोंसे पूजित, भयसे रहित, संगभेदसे विमुक्त, सम्यग्दर्शनसे शुद्ध संपम, तप व शीलसे सम्पन्न, जिनेन्द्र के मुखसे निर्गत परमागमके उपदेशक, महासत्त्वशाली, लक्ष्माके भालयभूत और गुणोंसे सहित ऐसे श्री विजय गुरु विख्यात हैं ॥ १४३-१४४ ॥ उनके पासमें जिन भगवान्के मुखसे निकले हुए अमृतस्वरूप परमागमको सुनकर तथा अर्थपदको पाकर कुछ (१३) उद्देशोंमें यह प्रन्य रचा है ॥ १४ ॥ मानुषक्षेत्र के भीतर चार इष्वाकार पर्वत ( दो धातकीखण्डमें व दो पुष्कारार्द्धमें ), पांच मन्दर पर्वत, पांच शाल्मलि वृक्ष और पांच ही जम्बूवृक्षादि भी हैं । वहां बीस ( जं. द्वी. ४ + धा. ८ + पु. ८ ) यमक पर्वत, उतने ही नाभिगिरि, बीस देवारण्य और तीस ( ६ + १२ + १२) भोगभूमियां निर्दिष्ट की गयी हैं। कुलपर्वत भी तीस, दिग्गज पर्वत चालीस (८+१६+ १६), विभंगा नदियां साठ (१२ + २४ + २४), और गंगादिक महानदियां सत्तर ( १४ + २८ + २८) जानना चाहिये । पद्मद्रहादि तीस (६ + १२ + १२), वक्षार पर्वत एक सौ ( २०+ ४० + ४०), वैताढ्य पर्वत एक सौ सत्तर ( ३४ + ६८ + ६८), और ऋषभगिरि भी उतने मात्र (३४+६८+६८)ही है । एक सौ सत्तर (३४ + ६८+ ६८) राजधानिया, उतने (१७०) ही छह खण्ड, तथा चार सौ पचास {(१४+६+ १२) + (२८+ १२८ + २४)+ ................... उश अयारिय, क आयरिय. २ क गंथं तं. ३ क रम्म ४ उश उवसंहरि.थ. ५ उश विगयममु. उश विणिग्गयमागमदेसओ. . उ सिरितिलओ, श सिरियाको ८ उश रिस विजय, पब सिरविजय. कचिोस, पविचिसं, शकिासे. १.उपबश तहब. ११ उइसुगामोतु मगा,श इसुगा तुमगा. १२पणामिगिरीया. १५उपवश मोगभूमीस. १४ उशसट्टि विभंगा सरिया. १५ सय दि. १ पचमवादिवसीया कप पठमवादियसिखा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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