Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 394
________________ --२२.१.] बारसमो उदेसो परगतमबहकउत्तरसमाहवं दकिद भाविणा सहिद । गच्छगुणमुवचिदाणं गणिदसरीरं विणिदिटुं॥.. पोक्खरवरउवहीदो सयंभुरमणो ति जाव' सलिलणिही । एदम्हि अंतरम्हि दु ससीण संखं पवक्खामि ॥१॥ पोक्सरवरउवहीए चोदाल सदा हवंति भादीए । जोयणलक्ख लक्खे चदु चदु चंदा पवति ॥५ बत्तीससदसहस्सा प्रोक्खरजल्लहिस्स जाण विक्खंभं । तत्तो' दुगुणा दुगुणा दीवसमुदाय विधिणा ॥ २३ बझयाए पछयाए चदुरुत्तरसंठिया हवे चंदा । इगतीस तह चउक्का मेल विदा हॉति पिंटेण ॥३. वारुणिदीवादीए भट्टासीदा हवंति विण्णिसदा । पुणरवि चउरो चठरो लक्ने लक्खे यति ॥१५ बारुणिवरजलधीए मादिम्मि हवंति ससिगणा णेया। छावत्तरि पंचसदा चदुचदुवढी दुवलपसु ॥ सीरवरे मादीए सदा दु एक्कारसा य बावण्णा। चंदविमाणा दिट्ठा लक्ने सक्ने य चदुरभिया॥२. सीरोदसमुरम्मि दु तिषणेव सदा हवंति चदुरधिया । बिग्णिसहस्सा णेया वलए वलए यडबडी. घदवरदीवादीए गदालसदा हवंति भट्टहिया । माणउदिसदा सोलस वेणेष कमेण जकनिम्मि ॥ भट्ठारस च सहस्सा चत्तारिसदा हवंति बत्तीसों । खोदवरम्मि दु दीवे वलए वहए य पदुवडी ॥३. किया गया है ॥ १९ ॥.... ....(8)॥२०॥ पुष्करवर समुद्रसे स्वयम्भूरमण समुद्र तक इस अन्तरमें स्थित चन्द्रोंकी संख्या कहते हैं ॥२१॥ पुष्करवर समुद्रके प्रथम वलयमें एक सौ चवालीस [ दो सौ अठासी ] चन्द्र स्थित हैं। मागे एक एक लाख योजनपर चार चार चन्द्र बढ़ते जाते हैं ॥ २२ ॥ पुष्करवर समुद्रका विष्कम्म बत्तीस लाख योजन प्रमाण जानना चाहिये । इससे भागेके द्वीप-समुद्र उत्तरोत्तर दुगुणे दुगुणे विस्तृत हैं ॥ २३ ॥ वलय-वलयमें अर्यात् आगे प्रत्येक वलयमें स्थित चन्द्र उत्तरोत्तर चार चार अधिक हैं । तथा इकतीस चतुष्कोंको मिलानेपर पिण्डफल प्राप्त होता है ॥ २४ ॥ वारुणीवर द्वीपके आदिमें दो सौ अठासी [ पांच सौ व्यत्तर ] चन्द्र हैं। पुनः आगे लाख-लाख योजनपर चार चार चन्द्र बढ़ते गये हैं ॥२५॥ वारुणीवर समुद्रके आदिमें पांच सौ व्यत्तर [ ग्यारह सौ वावन ] चन्द्र जानना चाहिये । इसके आगे सब वलयोंमें चार चारकी वृद्धि है ॥२६॥ क्षीरवर दीपके आदिमें ग्यारह सौ बावन (8) और इसके आगे लाख लाख योजनपर चार चार अधिक चन्द्रविमान निर्दिष्ट किये गये हैं ॥ २७ ॥ क्षीरोद समुद्रमें [ प्रथम वलयों ] दो हजार तीन सौ चार (8) चन्द्रविमान जानना चाहिये । इसके आगे प्रत्येक वलयमें चारकी वृद्धि होती गई है ।। २८॥ घृतवर द्वीपके आदिमें छयालीस सौ आठ (१) और उसी क्रमसे घृतवर समुद्रके आदिमें बानबै सौ सोना (१) चन्द्रविमान जानना चाहिये ।। २९ ।। क्षौद्रवर द्वीपके आदिमें अठारह हजार चार सौ बचीस (8) चन्द्रविमान हैं। आगे वलय वलयमें चारकी वृद्धि होती गई है ॥३०॥ क्षौद्रवर समुद्रके शाहिणा सणिद.१श गागुणवचिदाणं. ३ उपनाम, शचाम. ४श पोक्सरवरउवा मयंभुरवणो आदीए. ५.क पब एो. ६ पब इगिवीप,७श चत्तारिसदा सोलम तेव. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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