Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 369
________________ २.०० जंबूदीवपण्णत्ती [११. १४५ या तेरेक्कारस णव सत्त य पंच तिण्णि एक्कं च । रयणादितमतमंतो पुढवीणं पत्थडा भणिदा ॥ १४५ सीमंतगोद पदमोणिरओ पण रोरुगो तिबोद्धब्बोभंतो भवदि चउरथो उम्भंतो पंचमो गिरोv संभंतमसंभंतो विभंतो चेव अहमो णिरओ। तत्तो गवमो गिरओ दसमो तसिदो ति बोदव्वो ॥ १४७ चक्कंतमचक्कंतो विस्कंतो चेव तेरसो णिरओ। पदमाए पुढवीए तेरस गिरइंदया भणिया ॥ १४८ थडगे थणगे चेव य मणगे वणगे तहेवं बोद्धव्वा । धाडे तह संघाडे जिन्भे पुण जिन्भिगे चेव ।। १४९ लोले च लोलगे खलु तहेव थणलोलुवे य बोद्धव्या । विदियाए पुढवीए एयारस इंदया भणिया ।। १५. तत्तो तसिदो तवणो तावणो होइ पंचम णिदाहो" । छहो पुण पञ्जलिदो उज्जलिदो सत्तमो” गिरओ ॥१५१ संजलिदो अहमओ संपज्जलिदो य होदि णवमो दु। तदियाए पुढवीए णव खलु णिरइंदयो भणिया ॥ १५२ आरे मारे तारे तत्ते तमगे य होदि बोद्धन्वा । खाडे य खडखडे खलु इंदयगिरया चउत्थीए ॥ १५३ तमे भमे झसे" चेव अंधे तिमिसे य होदि बोद्धब्बा । पंर्चेदयणिरयाँ खलु पंचमखिदिए जहुद्दिई ॥ १५४ हिमवद्दललल्लंकइंदयणिरया हवंति छडीए । एक्को पुण सत्तमिए अवधिहाणो ति बोदबा ॥ १५५५ ॥ १४३-१४४॥ रत्नप्रभासे लेकर तमस्तमा पृथिवी तक क्रमशः तेरह, ग्यारह, नौ, सात, पांच, तीन और एक; इस प्रकार पाथड़े कहे गये हैं ॥ १४५ ॥ प्रथम सीमन्तक, निरय ( नरक ), रोरुक, चतुर्थ भ्रान्त, पंचम उद्धान्त, संभ्रान्त, असंभ्रान्त, आठवां विभ्रान्त, नौवां तप्त, दशवां त्रसित, चक्रान्त ( वक्रान्त ), अचक्रान्त (अवक्रान्त ) और तेरहवां विक्रान्त, ये तेरह इन्द्रक बिल प्रथम पृथिवीमें कहे गये हैं ॥ १४६-१४८ ॥ थडग, स्तनक, मनक, वनक, घाट, संघाट, जिस, जिहिक, लोल, लोलक और स्तनलोलुक, ये ग्यारह इन्द्रक द्वितीय पृथिवीमें कहे गये जानना चाहिये ।। १४९-१५० ॥ तप्त, त्रसित (शीत ), तपन, तापन, पांचवां निदाघ, छठा प्रज्वलित, सातवां उज्ज्वलित, आठवां संज्वलित और नौवां संप्रज्वलित, ये नौ इन्द्रक बिल तृतीय पृथिवीमें कहे गये हैं ॥१५१-१५२ ॥ आर, मार, तार, तप्त, तमक, खाड और खडखड, ये सात इन्द्रक बिल चतुर्थ पृथिवीमें कहे गये हैं ॥ १५३ ॥ तम, भ्रम, झष, अन्ध और तिमिस्र, ये पांच इन्द्रक बिल पांचवीं पृथिवीमें कहे गये हैं ॥ १५४ ॥ हिम, वर्दल और लल्लंक, ये तीन इन्द्रक बिल छठी पृथिवीमें तथा केवल अवधिष्ठान नामक एक इन्द्रक बिल सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिये ॥ १५५ ॥ जो दुराचारी जीव विषयोंमें आसक्त हैं, १उ श रयणाचित्तमतमंत. २ उश णिरगो पुण बोरुगो. ३ क ब बोधव्वा. ४ उ तवो भवदि, ब भत्तो भवदि, श तत्तो भवदि. ५ ब सशंतमसज्ञतो विसंतो. ६ उ श चितो. ७श यणगे. ८ उश मामागे वणगे तहेव, क ब मणगे तणगे य चेव. ९ उश जिते पुण जिभिगे, ब जिते पुण जिप्तगे. १० उ श पंचमो निजहो, ब पंचमो णिठाहो. ११ उश पन्जलिदो सत्तमो, ब पचलिदो उजलदो सत्तमो. १२ उश खलु निरयंदया, ब खलु इंदयरि. १३ क व तमे चमेज्झसे. १४ क पंचिंदियनिरया. व पंचेदियणिरया. १५ उ हिमवदललल्लक्खं, क व हिममद्दललल्लकं, श इमवदललल्लक्कं. १६ क ब अवधिहाणे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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