Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 346
________________ -१०.३३] दसमो उद्देसो [१७७ मादालीस सहस्सा गंतूर्ण जोयणाणि वेदीयो । बेलंभरदेवाणं भट्टेव य पवदा होति ॥ २७ जोयणसहस्सतुंगा कलसद्धसमाणभासुरा विउला । वणवेदिएदि जुत्ता वरतोरणमंडिया दिग्वा ॥ २८ वलयामुहाण या दो दो पासेसु हाँति णायम्वा । भक्खयभणाइणिहणा णाणामणिरयणपरिणामा ॥ २९ पुम्वेण होति णेया कोरथुभणामा णगा हु कणयमया । कोल्थुमणामसुरिंदा वसंति धेलंधरा वेसु ॥ ३० दक्खिणदिसेण गेया दर्गभासा अकरयणमयसेला । दशैमासदेवसहिया बहुविहपासादसंश्छण्णा ॥ पच्छिमदिसेण सेला रुप्पमया संखजुवलवरणामा । संखजुगलाभिधाणा वसंति वेलंधरा देवा ॥३९. उत्तरदिसणे गेया वेरुलियमयों हवंति वरसेला । वगसीदेवसहिया दससीमा होति णामेण ॥ ३३ भूमि २००००००००००-१३०६२५= ६९३७५, अथवा मुखकी ओरसे ५०००४१११ =५९३७५,५९३७५+ १०००० = ६९३७५ योजन । अथवा यही अभीष्ट विस्तारका प्रमाण निम्न प्रकार त्रैराशिकसे भी प्राप्त हो जाता है । जैसे- यदि १६००० यो. की उंचाई पर जलशिखाके विस्तारमें १९०००० यो. की हानि होती है, तो ११००० यो. की उंचाई पर उसमें कितनी हानि होगी? १९०० ०० ४ ११००० = १३०६२५, २००००० - १३०६२५ = ६९३७५ यो । __ वेदीसे ब्यालीस हजार योजन जाकर बेलंधर देवों के आठ पर्वत हैं ॥२७॥ एक हजार योजन ऊंचे, अर्ध कलशके समान भासुर, विशाल, वन-वेदियोंसे युक्त, दिव्य और उत्तम तारणोंसे मण्डित वे पर्वत वलयमुख (वडवामुख ) प्रभृति पातालोंके दो पार्श्वभागोंमें दो दो हैं, ऐसा जानना चाहिये। ये पर्वत अक्षय, अनादिनिधन और नाना मणियों एवं रत्नोंके परिणाम रूप हैं ॥ २८-२९ ॥ इनसे पूर्वकी ओर कौस्तुभ [ और कौस्तुभास ) नामक सुवर्णमय पर्वत हैं । उनके ऊपर कौस्तुभ [ और कौस्तुभास ] नामक वेलंधर सुरेन्द्र रहते हैं ॥३०॥ दक्षिण दिशाकी ओर [ उदक और ] उदकभास देवोंसे सहित तथा बहुत प्रकारके प्रासादोंसे व्याप्त अंकरत्नमय [उदक और ] उदकभास नामक शैल जानना चाहिये ॥३१॥ पश्चिम दिशामें उत्तम शंखयुगल ( शंख व महाशंख) नामवाले रजतमय शैल जानना चाहिये । इनके ऊपर शंखयुगल ( शंख और महाशंख ) नामक बेलंधर देव निवास करते हैं ॥३२॥ उत्तर दिशामें वैडूर्यमणिमय उदकसीम [उदक और उदवास] नामक उत्तम शैल हैं। इनके ऊपर उदकसीम [उदक और उदयास ] नामक देव हैं ॥ ३३ ॥ सब ही दिव्य पर्वत कककट्ठसहस्स,ब कालसब्दसमाण. २ वलयामहेण. ३क कथुम, ब कोईम. कधम. ब कुंथम. ५ कब दय. ६शया वेगलियमण हवंति मयसेला. ७ उ श परिणामा. ८ उ संखउबलामिणाया, श संबवलामिणेया. उश उत्तरदिसेहि. १. उबेरुलिय हवंति, श वेरुलियमण दांति "उक इससीम, दखमाम, श दसमीम. १२उकब दससीमा, श दसमीमा. बंदी. २३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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