Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 347
________________ १७८] - जंबूदीवपण्णत्ती [१०.३१सम्वे वि वेदिसेहिया वरतोरणमंडियां मणभिरामा । धुर्वतधयवाया जिणभवणविहूसिया दिग्वा ॥ ३४ पायालाण गेयों उभय पासुसु तह य सिहरसु । मायासे णिहिट्ठा पण्णगदेवाण गगराणि ॥ ३५ बावन्तरि संहस्सा बाहिरमभंतरं च बाचत्ता । अग्गोदगं धरता' अट्ठावीस सहस्साणि ॥ ३॥ एयव सबसहस्सा भुजग सहस्साणि चेव वाचत्ती । वेलासु दोसु भग्गादगे य लघणम्हि अच्छता ॥३॥ तत्तो वेदादो पुण बादालसहस्सोयणां गंतु । विदिसासु होति दीवा वादालसहस्सविस्थिण्णा ॥३८ दीपसु तेर्मु गैया जगराणि हवंति रयणणिवहाणि । णागाणं णिहिट्ठा गोउरपायारणिवहाणि ॥ ३९ वेदीदों गंपूर्ण बारह वह जोयणसहस्साणि । वायंचदिसेण पुणो होइ समुहम्मि वरदीवो ॥ ४० बारहसहस्सतुंगो विस्थिण्णायामतेत्तिओ चेव । कंचणवेदीसहिमो मरगयवरतोरणुत्तुंगो ॥॥ ससिकतसूरकतो कक्केयपउमरायमणिणिवहो । वरवग्जकणयविन्दुममरगयपासादसंजुत्तो ॥ ४२ गोदुमणामों दीवो णाणातरुगणसंकुलो रम्मो । पोक्खरणिवाविपउरो जिणभवणविहूसिनो दिवो ॥ ४३ बैंकोससमाहिरैया बासट्टा जायणा समुत्तुंगा । गोदुमैसुरस्स भवणं तदद्धविखंभआयाम ॥ ४४ वेदीसे सहित, उत्तम तोरणोंसे मण्डित, मनको अभिराम, फहराती हुई ध्वजा-पताकाओंसे सहित और जिनभवनसे विभूषित हैं ॥ ३४ ॥ पातालोंके उभय पार्श्वभागोंमें तथा शिखरोंपर आकाशमें पन्नग ( नागकुमार ) देवोंके नगर निर्दिष्ट किये गये हैं ॥ ३५॥ लवण समुद्रको बाह्य (धातकीखंडकी ओर) वेलाको धारण करनेवाले बहत्तर हजार, अभ्यन्तर (जम्बूद्वीपकी ओर) वैलाको धारण करनेवाले ब्यालीस हजार और अमोदक (जलशिखा) को धारण करनेवाले अट्ठाईस हजार इस प्रकार लवण समुद्रमें दोनों वेलाओंके ऊपर व अनोदक ( शिखर ) पर एक लाख ब्यालीस हजार ( ७२००० + ४२०००+ २८०००) नामकुमार देव स्थित हैं ॥३६-३७॥ पुनः उस वेदीसे ब्यालीस हजार योजन जाकर विदिशाओंमें ब्यालीस हजार योजन विस्तीर्ण [आठ ] द्वीप हैं ॥ ३८॥ उन द्वीपोंमें रत्नसमूहोंसे युक्त और गोपुर एवं प्राकार समूहसे संयुक्त नागकुमारोंके नगर निर्दिष्ट किये गये जानना चाहिये ॥ ३९ ॥ वेदीसे वायव्य दिशाकी और बारह हजार योजन जाकर समुद्र में गोतम नामक उत्तम द्वीप है। यह दिव्य द्वीप बारह हजार योजन ऊंचा, इतने ही विस्तार व आयामसे संयुक्त, सुवर्णमय वेदीसे संहित, मरकत मणिमय उत्तम तोरणोंसे उन्नत; चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त, कर्केतन एवं पद्मराग मणिोंके समूहसे सहित; उत्तम वज्र, सुवर्ण, विद्रुम एवं मरकत मणिमय प्रासादोंसे संयुक्त; नाना क्षोंके वनोंसे व्याप्त, रम्य, प्रचुर पुष्करिणियों एवं वापिकाओंसे युक्त और जिनभवनोंसे विभूषित है ॥ ४०-४३ ॥ इस द्वीपमें दो कोश अधिक बासठ योजन ऊंचा, इससे आधे विस्तार व आयामसे सहिंत, दो कोश अवगाहसे युक्त, नाना मणियों एवं रत्नोंसे मण्डित, तथा . १ उ वि वेदिसया, श वि विदेसाया. २क पासे. ३ उश वाचित्ता, ४ उ श धरता, कब धरिता. ५ उश एवं. ६ उ दावतं, केबांचतं, बं वाचत्ता, शवावतं. ७ उ क ब श अगोदगे. उश आहुत्तो, कब आरत्ता. ९उश तोरणगा.१० उश समविरेया. ११ उकश गोदुम.ब गादुम. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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