Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 328
________________ - ९.१३] णवमो उसो वणवेदिएहि जुत्तो वातारणमंडिओ परमरम्मो । आसीविससुरसहिमो सुरिंदकरिकुंभसमसिहरो ॥ ५४ तत्तो भवरदिसाए पक्षिणी णामेण जणवदो होइ । गलिणिवणेहि सरेहि य सोहह सो सम्वदोमहो ॥ ५५ जवसालिधणपउरो तुवरीकप्पासगोहुमाइण्णो । वररायमासपउरो मरीचिवल्लीहि संछण्णो ॥ ५६ गंगाणदीहि रम्मो सिंधूसरिएहि भूसियपदेसों । छक्खंडणलिणविजओ वेदढणगेण भभिरामो ॥ ५७ तम्मि देसम्मि मज्झे विरया जामेण होइ वरणयरी । मणिरयणभवणणिवहा कंचणपायाररमणीया ॥ ५४ वेरुलियदारपउरा अगाहखाईहि परिउडा दिम्वा । जिणइंदभवणणिवहा उत्तुंगपडायसंछण्णा ॥ ५९ भवरेण तदो गंतु होइ गदी सोइवाहिणीणामा । वणवेदिरहि जुत्ता वरतोरणमंडिया दिवा ॥ ६० मरगयकंचणविहमसोवाणगणेहि सोहिया दिव्वा । संखेंदुकुंदपंदुर तरंगभंगेहि रमणीया ॥" अट्ठावीसाहि तहा सहस्सगुणिदादि णदिहि संजुत्ता । देहलितलेण पविसइ सीतोदा तोरणवरस्स ॥ ६२ णेया विभंगसरिया सीदोदजलं भयंतगंभीरं । पविसइ वेगेण पुणो घणेसायरसइणिवहेण ॥ ६३ दिव्य, वन-वेदियोंसे युक्त, उत्तम सोरणोंसे मण्डित, अतिशय रमणीय, आशीविष नामक देवसे सहित और ऐरावत हायीके कुम्भके सदृश शिखरसे संयुक्त है ॥ ५२-५४ ॥ उससे पश्चिम दिशामें जाकर नलिना नामक देश है। सर्वतः मंगलमय वह देश नलिनीवनों और सरोवरोंसे शोभायमान है ॥ ५५ ॥ छह खण्डोंसे युक्त यह नलिना देश जौ एवं शालि धान्यकी प्रचुरतासे सहित; तूबर, कपास व गेहूंसे भरपूर; उत्तम राजमाषकी प्रचुरतासे युक्त, मरीचि (मिर्च ) की वेलोंसे व्याप्त, गंगा नदी व सिन्धु नदीसे भूषित प्रदेशवाला और वैताब्य पर्वतसे सुशोभित है ॥५६-५७ ॥ उस देशके मध्यमें विरजा नामक उत्तम नगरी है। यह नगरी मणियों एवं रत्नोंके भवनसमूहसे सहित, सुवर्णमय प्राकारसे रमणीय, वैडूर्य मणिमय प्रचुर द्वारोंसे सहित; अगाध खातिकाओंसे वेष्टित, दिव्य, जिनेन्द्रोंके भवनसमूहसे संयुक्त और उन्नत पताकाओंसे व्याप्त है ॥ ५८-५९ ॥ उससे पश्चिमकी ओर जाकर स्रोतोबाहिनी नामकी नदी है । यह नदी वन-वेदियोंसे युक्त, उत्तप तोरणोंसे मण्डित, दिव्य, मरकत, सुवर्ण एवं विद्रुममय सोपान समूहोंसे शमित, दिव्य; शंख, चन्द्रमा एवं कुन्द पुष्पके समान धवल तरंगों-मंगोंसे रमणीय और अट्ठाईस हजार नदियोंसे संयुक्त होती हुई उत्तम तोरणद्वारके देहलितलसे सीतोदा नदीमें प्रवेश करती है ॥ ६०-६२॥ यह विभंगा नदी बादल अथवा समुद्र जैसे शब्द समूहके साथ वेगसे अनंतगंभीर ( अथाह ) सीतोदा नदीके जलमें प्रवेश करती है, ऐसा जानना चाहिये १ब परिणो. . उ जणवहो, श जणवेदो. ३ व गलिण.' ४ उ श बण्ण, व वल. ५व सरीचि. व सिंधूसरियहि भूसियापएसो, श सिंधूसरिएहि रम्मो प पदेसो. ७ श दार. ८ श णाम. (कप्रतिपाठोऽयम् , जब शणिवाणदीशि... उशवण. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480