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णवमो उसो
वणवेदिएहि जुत्तो वातारणमंडिओ परमरम्मो । आसीविससुरसहिमो सुरिंदकरिकुंभसमसिहरो ॥ ५४ तत्तो भवरदिसाए पक्षिणी णामेण जणवदो होइ । गलिणिवणेहि सरेहि य सोहह सो सम्वदोमहो ॥ ५५ जवसालिधणपउरो तुवरीकप्पासगोहुमाइण्णो । वररायमासपउरो मरीचिवल्लीहि संछण्णो ॥ ५६ गंगाणदीहि रम्मो सिंधूसरिएहि भूसियपदेसों । छक्खंडणलिणविजओ वेदढणगेण भभिरामो ॥ ५७ तम्मि देसम्मि मज्झे विरया जामेण होइ वरणयरी । मणिरयणभवणणिवहा कंचणपायाररमणीया ॥ ५४ वेरुलियदारपउरा अगाहखाईहि परिउडा दिम्वा । जिणइंदभवणणिवहा उत्तुंगपडायसंछण्णा ॥ ५९ भवरेण तदो गंतु होइ गदी सोइवाहिणीणामा । वणवेदिरहि जुत्ता वरतोरणमंडिया दिवा ॥ ६० मरगयकंचणविहमसोवाणगणेहि सोहिया दिव्वा । संखेंदुकुंदपंदुर तरंगभंगेहि रमणीया ॥" अट्ठावीसाहि तहा सहस्सगुणिदादि णदिहि संजुत्ता । देहलितलेण पविसइ सीतोदा तोरणवरस्स ॥ ६२ णेया विभंगसरिया सीदोदजलं भयंतगंभीरं । पविसइ वेगेण पुणो घणेसायरसइणिवहेण ॥ ६३
दिव्य, वन-वेदियोंसे युक्त, उत्तम सोरणोंसे मण्डित, अतिशय रमणीय, आशीविष नामक देवसे सहित और ऐरावत हायीके कुम्भके सदृश शिखरसे संयुक्त है ॥ ५२-५४ ॥ उससे पश्चिम दिशामें जाकर नलिना नामक देश है। सर्वतः मंगलमय वह देश नलिनीवनों और सरोवरोंसे शोभायमान है ॥ ५५ ॥ छह खण्डोंसे युक्त यह नलिना देश जौ एवं शालि धान्यकी प्रचुरतासे सहित; तूबर, कपास व गेहूंसे भरपूर; उत्तम राजमाषकी प्रचुरतासे युक्त, मरीचि (मिर्च ) की वेलोंसे व्याप्त, गंगा नदी व सिन्धु नदीसे भूषित प्रदेशवाला और वैताब्य पर्वतसे सुशोभित है ॥५६-५७ ॥ उस देशके मध्यमें विरजा नामक उत्तम नगरी है। यह नगरी मणियों एवं रत्नोंके भवनसमूहसे सहित, सुवर्णमय प्राकारसे रमणीय, वैडूर्य मणिमय प्रचुर द्वारोंसे सहित; अगाध खातिकाओंसे वेष्टित, दिव्य, जिनेन्द्रोंके भवनसमूहसे संयुक्त और उन्नत पताकाओंसे व्याप्त है ॥ ५८-५९ ॥ उससे पश्चिमकी ओर जाकर स्रोतोबाहिनी नामकी नदी है । यह नदी वन-वेदियोंसे युक्त, उत्तप तोरणोंसे मण्डित, दिव्य, मरकत, सुवर्ण एवं विद्रुममय सोपान समूहोंसे शमित, दिव्य; शंख, चन्द्रमा एवं कुन्द पुष्पके समान धवल तरंगों-मंगोंसे रमणीय
और अट्ठाईस हजार नदियोंसे संयुक्त होती हुई उत्तम तोरणद्वारके देहलितलसे सीतोदा नदीमें प्रवेश करती है ॥ ६०-६२॥ यह विभंगा नदी बादल अथवा समुद्र जैसे शब्द समूहके साथ वेगसे अनंतगंभीर ( अथाह ) सीतोदा नदीके जलमें प्रवेश करती है, ऐसा जानना चाहिये
१ब परिणो. . उ जणवहो, श जणवेदो. ३ व गलिण.' ४ उ श बण्ण, व वल. ५व सरीचि. व सिंधूसरियहि भूसियापएसो, श सिंधूसरिएहि रम्मो प पदेसो. ७ श दार. ८ श णाम. (कप्रतिपाठोऽयम् , जब शणिवाणदीशि... उशवण.
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