________________
१५८ ]
जंबूदीपणती
[ 9.82
वणवेदिहि जुत्ता' वरतोरणमंडिया मणभिरामा । णाणापडायणित्रहा अमरिंदपुरी व पच्चक्खा ॥ ४३ भवरेण तदो गंतुं सीदोद' विभंगगामदो होइ । वरजदि अगाहतोया दक्खिणदेो उत्तरे वहइ ॥ ४४ वणवेदिर्दि जुत्ता वरतोरणमंडिया मणभिरामा । अट्ठावीससहस्साणदीहि परिवेढिया' वहद्द ॥ ४५ भवरेण वदो गंतु संखा णामेण जगवदो होइ । वरसालिछे णित्रहो पुंडच्युवणेदि संकृष्णो ॥ ४६ कल्दारकमलकंदलणीलुप्पलकुमुदछण्णदीदीहि । वरपोक्खरिणीहिं तद्दा सोद्दद्द सो जणवदो रम्मी ॥ ४७ गंगा सिंधू य तहा गच्छति य उत्तरेद्दि य मुद्देहि । देसम्मि तम्मि मज्झे रुप्पमओ होह वेदड्ढो ॥ ४८ तस्य देवस्स मज्झे भरया णामेण होइ वरणयरी । अमरावइसमसरिसा मणिकंचणरयणसारेण ॥ ४९ फहिमागमवणणिवा कंचणपासारमंडिया दिव्त्रा । वणवेदिएहि जुत्ता वरतोरणभूसिया रम्मा ॥ ५० पोक्स्खरणिवाविपरा जिणभवणविहूसिया मणभिरामा । उज्जाणवणसमिद्धा णरणारिगणेहि रमणीया ॥ ५१ भवरेण तदो गंतुं भासीविसपन्थदो पुणो हो । निद्धंतकणयवण्णो बहुविद्दमणिकिरणपज्जलिभो ॥ ५२ रयणमय भवणणिवो विज्जाहरगरुड किंणरावायो । सुरसयसहस्सपउरो जिणभवणविहूसिभ दिग्वो ॥ ५३
तोरणोंसे मण्डित, मनको अभिराम और नाना पताकाओं के समूइसे सहित होती हुई साक्षात् इन्द्रपुरी के समान प्रतीत होती है ॥ ४१-४३ ।। उससे पश्चिम की ओर जाकर अगाध जलसे संयुक्त सीतोदा नामकी उत्तम त्रिभंगा नदी है, जो दक्षिणसे उत्तरकी ओर बहती है ॥ ४४ ॥ यह नदी वन वेदियों से युक्त, उत्तम तोरणोंसे मण्डित, मनको अभिराम और अट्ठाईस हजार नदियोंसे वेष्टित होकर जाती है ॥ ४५ ॥ उससे पश्चिम की ओर जाकर शंखा नामक देश है । वह रम्य देश उत्तम शालि धान के खेत के समूइसे सहित, पोंडा व ईखके वनोंसे व्याप्त तथा कद्दार, कमल, कन्दल, नीलोत्पल एवं कुमुदोंसे आच्छादित ऐसी दीर्घिकाओं एवं पुष्करिणियों से शोभायमान है ।। ४६-४७ ॥ वहां गंगा-सिन्धु नदियां उत्तर की ओर जाती है । उस देशके मध्य में रजतमय वैनाढ्य पर्वत है ॥ 8८ ॥ उस देशके मध्य में अरजा नामक श्रेष्ठ नगरी है । यह नगरी मणि, सुवर्ण एवं रत्न रूप धनसे अमरावती के सम-सदृश है ॥ ४९ ॥ उक्त नगरी स्फटिकमणिमय मत्रनसमूह से सहित, सुवर्णमय प्रासादोंसे मण्डित, दिव्य, वन-वेदियों से युक्त, उत्तम तोरणोंसे भूषित, रम्य, प्रचुर पुष्करिणियों व वापियोंसे संयुक्त, जिनभवन से विभूषित, मनको अभिराम, उद्यान - नोंसे समृद्ध और नर-नारीगणांस रमणीय है ।। ५०-५१ ॥ फिर उससे पश्चिम की ओर जाकर आशीविष नामका पर्वत है । यह पर्वत खूब तपाये गये सुवर्णके सहरा वर्णवाला, वहुत प्रकारके मणियोंके किरणोंसे प्रज्वलित, रत्नमय भवनोंके समूह से सहित; विद्याघर, गरुड़ एवं किन्नरों का आवासस्थान, लाखों देवोंकी प्रचुरता से युक्त, जिनभवन से विभूषित,
१ उ शत्तो. २ क व सीदोवा. ३ उश वरिवेढिया ४ उ रा सालिच्छेत. ५ व पुंड उश कुमुदुखण्न. ७ व सिंधू तह गच्छति इ उत्तरेहि.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org