Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-९. १२)
णमो उद्देसो
[१५७
वरगामणयरणिवहो मडअखेडाहि मंडिओ दिव्यो । जयरायरपरिइण्णो रयण होवेहि संधागो ॥ ३३ देसस्स तस्प या महापुरी णामदो त्ति वरणयरी । रयणमयभवणणिवहा मणिकंचणस्यणपरिणाम। ॥ ३४ मणिमयपायारजुदा जिम्मलमणिकणर्य उरदुवारा । जिणइंदभवणणिवहा सोहा सा सम्बदोभद्दा ॥ ३५ अत्ररेण तदो गंतुं विगहावदि णामदो हवे सेलो। कणयमओ उत्तुंगो गाणाविहरयणसंछष्णो ॥ ३६ वणसंडसंपरिउडे। मगितोरणमंडिमो मगभिरामो। चत्तारिसिहरसहिओ जिगभवणविहूलिभो दिवो ॥३. मायाकुंभसरिसो विगडासुरैणाम देवसाहीग: । बहुदेवभवगडगो वरपोखरगोहि रमणीओ ॥ ३८ भवरेण तदो गर्नु होइ तहा पउमझावदी विजो। पट्टामडंबाउरो बहुगाम समाउलो रम्मो ॥ ३९ वारयणायपउरोदोणामुहकपडेहि कयलोहो । गंगासिंधूदि जुदो वेदड्ड गोग रम गीभो ॥ ४० देसस्स रायवाणी विज्ञायपुरीणामदो त्ति णिद्दिष्टा। वाजिदगीलमरगयासावरेहिं संछागा ॥४१
धवल भइसरिसांगागाभवणेहि सोहिया दिवा । जिगभवगसिद्धगिवदा सुगंधगंधुद्धदा' रम्मा ॥ ४२ .........................
ग्रामों व नगरों के समूहसे सहित, मटंबों व खेड़ोंसे मण्डित, दिव्य नगरों व आकरोंसे व्याप्त और रत्नद्वीपोंसे घिरा हुआ है ।। ३३ ॥ उस देश की राजधानी महापुरी नामकी उत्तम नगरी जानना चाहिये। वह नगरी रत्नमय भवन समूहसे सहित; मणि, सुवर्ण एवं रत्नों के परिणाम स्वरूप; मणिमय प्राकारसे युक्त, निर्मल मणि व सुवर्णमय गोपुद्वारों से संयुक्त, जिनेन्द्र मवनोंके समूहसे युक्त और सर्वतः मंगलमय होती हुई शोभायमान है ॥ ३४-३५॥ उससे पश्चिमकी
ओर जाकर विक विज ] टाक्ती नामका शैल है । यह शैल सुवर्णमय, उन्नत, नाना प्रकारके रत्नोंसे व्याप्त, वनखण्डोसे वेष्टित, मणिमय तोरणोंसे मण्डित, मनको अभिगम, चार शिखरोंसे सहित, जिनभवनसे विभूषित, दिव्य, हाथीके कुम्भस्थलके सदृश, विकटासुर नामक देवके स्वाधीन, बहु। देवभरोसे व्याप्त और उत्तम पुष्करिणियोंसे रमणीय है ॥ ३६-३८ ॥ उससे पश्चिमकी ओर जाकर पद्मकावती नामका देश है । यह देश प्रचुर पट्टनों व मटंबोंसे सहित, बहुत प्रामोंसे भरा हुआ, रम्य, उत्तम रत्नाकरोंकी प्रचुरतासे संयुक्त, द्रोणमुखोसे व कीटोंसे शोभायमान, गंगा-सिन्धु नदियोंसे युक्त और वैताढ्य पर्वतसे रमणीय है ॥३९-४०॥ उस देशकी राजधानी विजयपुरी नामसे निर्दिष्ट की गई है। यह नगरी वज्र, इन्द्रनील एवं मरकत मणिमय श्रेष्ठ प्रासादोंसे व्याप्त, धवल मेघकूटके सदृश नाना भवनोंसे शोमित, दिव्य, जिनभवनों व सिद्धभवनोंके समूहसे संयुक्त, सुगन्ध गन्धसे व्याप्त, ग्य, वन-वेदियोंसे युक्त, उत्तम
१ ब महापुरीदोतिणोमवर. २ व णिम्मलवरकणय. ३ व वेगादिसुर. ४ श बहुगामकब्बडेहि. ५ ब सरिस. ५ उ श सुगंधुगंधुदुदा, ष पुगंधुगंधद्धदा.
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