Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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जंबूदीवपण्णत्तिकी प्रस्तावना
विषय
गाथ
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विषय
गाथा ज्योतिषी देवोंके प्रासादोंका वर्णन उद्देशान्त मंगल
१३ तेरहवां उद्देश (पृ. २३५-२५४) पार्श्व जिनेन्द्रको नमस्कार कर प्रमाणभेदके
कथनकी प्रतिज्ञा कालके दो और तीन भेदोंका निर्देश । समयादि रूप कालभेदोंका वर्णन . परमाणुका स्वरूप अवसन्नासन्नादि मानभेदोंका उल्लेख अंगुलभेदोंका वर्णन पाद व वितस्ति आदि मानभेदोंका स्वरूप पल्योपमके भेद व उनका स्वरूप पल्य-सागर आदि ८ मान भेदोंका निर्देश सर्वज्ञसाधनार्थ प्रत्यक्षादि प्रमाणोंका उल्लेख प्रत्यक्ष व परोक्षके भेद-प्रभेदोंका वर्णन आभिनिबोधिक ज्ञानके ३३६ भेदोंका
विवरण भुतज्ञानका वर्णन व्यक्तिकी प्रमाणतासे वचनों की प्रमाणताका
उल्लेख सर्वज्ञका स्वरूप देवके विविध नामोंका निर्देश पंच कल्याणकोंका उल्लेख स्वाभाविक १. अतिशयोंका उल्लेख
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घातिक्षयसे उत्पन्न १० अतिशयोंका उल्लेख ९८ देवकृत १४ अतिशयोंका उल्लेख आठ मंगलद्रव्योंका विवरण .
११२ आठ प्रतिहार्योंका विवरण
१२२ घातिकमोंके क्षयसे उत्पन्न गुणोंका उल्लेख . १३१ १८ हजार शीलों व ८४ लाख गुणोंका
निर्देश सर्वज्ञभाषित अर्थके ग्रहणकी प्रेरणा १३७ ग्रन्थकर्ता द्वारा आचार्य परम्परागत परमेष्ठि
भाषित ग्रन्थार्थके लिखे जानेकी सूचना १४० श्री विजय गुरुके समीपमें जिनागमको सुनकर ..
अढाई द्वीपमें स्थित इष्वाकारादि पर्वतों, शाल्मलि आदि वृक्षों, महानदियों तथा तीन लोक सम्बन्धी अन्य विकल्पोंके किये गये वर्णनकी सूचना
१४४ माघनन्दी गुरुके प्रशिष्य और सकलचन्द्र
गुरुके शिष्य श्रीनन्दी गुरुके निमित्त जंबू
द्वीपप्रज्ञप्तिके लिखे जानेकी सूचना १५३ ग्रन्थकर्ता द्वारा अपने दीक्षागुरु वलनन्दी _और प्रगुरु वीरनन्दीका उल्लेख १५८ पारियात्र देशके अन्तर्गत वारा नगरमै स्थित
रहकर शक्ति या शान्ति भूपालके शासनकालमें प्रकृत ग्रन्थके लिखे जानेका उल्लेख १६८ अन्तिम मंगल
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