Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-२५३)
बिदिओ उद्देसो
[१५
उवक्षणकाणणसहिया पोक्खरिणीवाविवप्पिणसणाहा । जिणसिद्धभवणणिवहा को सक्कइ वणिर्ड सयलं ॥४१ तत्तो दस उप्पडया दसैजोयणवित्थडा' मुणेयन्वा । अभिजोगाणं णयरा णाणामणिकिरणपरिणामा ॥ ४२ रयणमयवेदिणिवहा वरगोउरभासुरा रयणचित्ता। मणिम्यवर पासादा सन्चे सोहंति ते विमला ॥ ४३ परकप्परुस्खणिवहा णाणाविहतरुगणेहि कयसोहा । वावीतडायपउरा वरचेइयभवणसंछण्णा ॥ ४४ सोधम्मीसाणाणं देवाणं वाहणा सुरा' हॉति । दोसु वि सेढीसुतहा देवा वररूवसंपण्णा ॥ ४५ जोयणपंचुप्पइया तत्तो अभिजोगपुरवरहितो । दसजोयणवित्थिण्णा वेदवणगाण वरसिहरा ॥ ४६ तियसिंदेचावसरिसा जिम्मल बालिंदुभासुराडोवा । वरवेदीपरिखिप्ता मणितोरणभासुरा रम्मा ॥ १७ सम्मि समभूमिभागे जाणामणिविप्फुांतकिरणम्मि । हाति णव चेव कूडा चणमणिमंडिया दिवा ॥४८ पढमा य सिद्धकूडा पुग्वेण य होंति सम्वकूडाणं । बिदिया य भरहकूडा तदिया खंडप्पवादा य !! ४९ चउथा य माणिभहा वेदकुमार पंचमा कूडा। छटा य पुण्णभद्दा तिमिसगुहा सत्तमा कूडा ॥ ५० भट्ठम य भरहकूडा णवमं वेसमणे तुंगवरकूडा। छज्जोयण सक्कोसा उच्छेहा डोंति ते सम्वे ॥ ५॥ विक्खंभायामेण य छच्चेव य जोयणा सकोसा य । मूले हवंति कूदा वेदहाणं समुट्टिा ॥ ५२ मज्झे चत्तारि हवे अट्टादिज्जा य कोसपरिसंखा। उवरि तिण्णेव भवे जोयणसंखा विणिहिट्ठा ॥ ५३
उपवनोंसे सहित; पुष्करिणी, वापी एवं वप्रिणियोंसे सनाथ, तथा जिनों व सिद्धोंके भवनसमूहसे संयुक्त हैं । इनका सम्पूर्ण वर्णन करनेके लिये कौन समर्थ है ? ॥४१॥ विद्याधरश्रेणियोंसे दस योजन ऊपर जाकर वन-उपवनोंसे सहित, दस योजन विस्तृत
और नाना मणियोंके किरणोके परिणाम स्वरूप आभियोग्य देवोंके नगर हैं ॥ ४२ ॥ रत्नमय वेदिसमूहसे सहित, उत्तम गोपुरोसे भास्वर, रत्नोंसे विचित्र और मणिमय उत्तम प्रासादोंसे संयुक्त वे सब निर्मल नगर शोभायमान हैं ॥ ४३ ॥ उक्त नगर उत्तम कल्पवृक्षोंके समूहसे सहित, अनेक प्रकारके तरुगणोसे शोभायमान, प्रचुर वापियों व तालावोंसे संयुक्त, और उत्तम चैत्यालयोंसे व्याप्त हैं ॥ १४ ॥ इन दोनों ही श्रेणियों में रहनेवाले वे देव-उत्तम रूप युक्त सौधर्म एवं ईशान इन्द्रके वाहन जातिके देव हैं ॥ ४५ ॥ उन अभियोगपुरोंसे पांच योजन ऊपर जाकर दस योजन विस्तीर्ण वैताढ्य पर्वतोंके उत्तम शिखर है ॥ १६॥ इन्द्रधनुषके सदृश रमणीय वे शिखर निर्मल बाल चन्द्रके समान भास्वर, उत्तम वैदियोंसे वेष्टित, और मणितोरणोंसे शोभायमान हैं ॥४७॥ नाना मणियोंकी प्रकाशमान किरणोंसे संयुक्त उस समभूमिभागमें सुवर्ण एवं मणियोंसे मण्डित दिव्य नौ कूट हैं ॥ ४८ ॥ उनमें सब कूटोंके पूर्व की ओरसे प्रथम सिद्धकूट, द्वितीय भरतकूट, तृतीय खण्डप्रपात, चतुर्थ माणिभद्र, पंचम वैताढ्यकुमारकूट, छटा पूर्णभद्र, सातवां तिमिश्रगुह कूट, आठवा भरतकूट और नौवां वैश्रवण नामक उन्नत उत्तम कूट है। ये सब कूट एक कोश सहित छह योजन ऊंचे हैं ॥ ४९-५१ ॥ वैताट्य पर्वतोंके ये क्ट विष्कम्भ व आयामसे भी मूलमें एक कोश सहित छह योजन, मध्यमें अढ़ाई कोश सहित चार योजन तथा ऊपर तीन योजन प्रमाण निर्दिष्ट किये गये हैं ॥ ५२-५३ ॥ उक्त कूटोंकी परिधियां
१उश उववण काणणसहिया दस २ उश वित्तुडा. ३ उश मुसुरा. ४ उश पुरखरेहतो, ब पुरखरेहिं . ५उश तिय संद६ उ श च उचा य माणिभदा, पचउत्था य मणिभदा, ब चउभ य मर्माणमद्दा, ७ उ श वेदड़ा ८डशणमण. ष पण्णास्सा.
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