Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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१०६]
जंबूदीवपण्णत्ती
वरवेदिएहि जुत्तं मणिमयवरतारणेहि रमणीयं । णाणातगणणिवहं जिणभवणाविहूसियं रम्मं ॥५९ तस्स बहुमज्झदेसे जंबूणद भट्टजायणायामं । चदुजोयण उत्तुंग विखंभ हवंति सत्तारि ॥ ६० सिम्मलमणिमयपीढं बारसवेदीहि परिउड दिव्वं । णाणातोरणणिवई कंचणमणिरयणसंछण्णं ॥ सस्स दु मज्झे भवरं णायव्वं महजोयणुत्तुंग । चउजायणविस्थिपणं मणिमयवरमासा पीढं ॥ ६२ तस्स दु पीठस्सुवरि सुदसणो णामदो हवे जंबू.। येगाउवयाहलं भट्टेव य जोगणुत्तुंग' ॥ ६३ छज्जोयणा य विडवी' गाणामणिकणयकुसुमफलपउरं । बेरुलियरयणमूल मरगयवरपत्तरमणीयं ॥ ६४ चदुसु वि दिसासु भागे चत्तारि हवंति तस्स वरसाहा छज्जोयणायामा विस्थारों होतिथे कोसा ॥ ६५ सम्वेसु होति गेहा कोसायामा तदद्धविक्खंभा । पादूकोसतुंगा चसु कि साहेसु योन्वा ॥ ६६ उत्तरदिसाविभागे जिणिदईदाण होइ वरभवणं । अवसेलतिषिणभवणा जक्खस्स यणादियस्स हवे ॥६७ अंबूदुमा विणेया बत्तीसलहस होति धूमदिसे । दक्षिणदिसे दिया चालीससहस्स दुमणिवहा ॥६८ रिदिदिसाविभागे लडदालसहस्स होति जंबुदुमा । एदे तिणि वि संडा तिणि वि परिसाण णायवा ॥
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तोरणों से रमणीय, नाना तरुगों के समूह से परिपूर्ण, और जिनभवनोंसे भूषित रमणीय सुवर्णमय पीठ है ॥ ५८-५९ ॥ उसके बहुमध्य देशमें आठ योजन आयात, चार योजन ऊंचा व चार योजन विस्तृत, बारह वेदियोंसे वेष्टित, नाना तोरणोंसे सहित तथा सुवर्ण, मणि एवं रत्नोंसे व्याप्त निर्मल मणिमय सुवर्ण पीठ है ॥ ६०-६१ ॥ उसके मध्यमें आठ योजन ऊंचा और चार योजन विस्तीर्ण दीप्तिमान् उत्तम मणिमय दूसरा पीठ जानना चाहिये ॥ ६२ ॥ उस पीठ के ऊपर दो कोश बाहल्यवाला व आठ योजन ऊंचा सुदर्शन नामक जम्बू वृक्ष है ॥ ६३ ॥ छह योजन प्रमाण [मध्य शाखा (विडिमा) से संयुक्त उक्त वृक्ष नाना मणि एवं सुवर्णमय कुसुमों व फलोंकी प्रचुरतासे सहित, वैद्य रत्नमय मूलसे संयुक्त, और मरकतमय उत्तम पत्रोंसे रमणीय है ॥ ६४ ॥ उसकी चारों ही दिशाओंमें छह योजन लम्बी और दो कोश विस्तारवाली चार उत्तम शाखायें हैं ॥६५॥. इन चारों ही शाखाओंपर एक कोश आयत, इससे आधे विस्तृत और पौन कौश ऊंचे प्रासाद जानना चाहिये ॥ ६६ ॥ इनमें से उत्तर दिशाभागमें स्थित श्रेष्ठ भवन जिनेन्द्र-इन्द्रोंका तथा शेष तीन भवन अनादन यक्ष के हैं ॥ ६७ ॥ जम्बू वृक्षके परिवार वृक्ष भी बत्तीस हजार धूम ( आग्नेय ) दिशा, चालीस हजार दक्षिण दिशामें और अड़तालीस हजार नैऋत्य दिसा विभागमें जानना चाहिये । ये तीनों समूह तीनों पारिषद देवोंके समझना चाहिये ॥ ६८-६९ ॥ पश्चिम दिशामें सात वृक्ष सात अनीकोंके तथा
पब जोयणातुंम, श जोयणतुंग. २ विट्ठवी. ३ पब दिसाविभागे. पव वित्थारो.५ पर पाहणं. उश दिसामिमागे. ७उ अणाटियस हावे, प..., ब अणाहियस्स हवे, शमणाहियस हाये. उ सास होति धूमदिसो, श सहस्सदमणिवहासो.
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