Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-७.९५)
सत्तमो उसो
[१२.
हज्जोयणा सफोला कुंमुहे' वित्थडामो सरियालो । बासट्टा' कोसा सीदाए पविसमाणीको । ०७ छण्णउदा छच्च सया जायणसंखा ससपरिहीणा । सोदावरसरितीरे कच्छाविजयस्स विक्खंभो ॥ ८८ णीलगिरिस्स दु हेढा कुंआणि हवंति सकिलपुण्णाणि । वणवेदिये जुनाणि य तोरणदारहि रम्माणि ॥ ०१ फुटाणं णायग्वा विक्वंभायाम जोयणपमाणा । वासट्टा बे कोसा दसावगाहा समुट्ठिा ॥ ९० रत्ता रत्तोदा वि य णीसरितणं' महतकुंडादो । संकुडिऊण तालो वेदगुहेसु पविसति ॥ ९. वेदगुहाण तहा दाराण वियाण विस्थडायामा । उच्छेहा तह जोयण बारस पग्णास अटेव' ॥ ९२ परिहाणिवडिवज्जियगुहाणे मोसु हाँति सरियाभो । भट्टेव दु विस्थिणा सम्वस्थ समा समुट्ठिा ।। ९५ वेभड्ढमाभागे दो दो सरियामो तेसु पविसंति । रत्तारत्तोदेसु य उम्मग्गणिमग्गणामामओ ॥ ९. कोहि णिग्गदामोदो दो जोयण हवंति दोहाम।। वरचक्कवहिणिम्मियसंकमसहितकूलामो ॥ ९५ बरतोरणजुत्ताको कंचणवेदीहि परिउढामो दु । वणसंहभूसियामो मणिमयसोवाणनिवहाभो ॥९॥
( उद्गमस्थान ) में एक कोश सहित छह योजन (६) तथा सीता नदीमें प्रवेश करते समय बासठ योजन व दो कोश प्रमाण विस्तृत हैं ॥ ८७ ॥ उत्तम सीता नदीके तीरपर कम्छा विजयके [ खण्डोंका ] विष्कम्भ छठे भागसे हीन छह सौ छयानबै योजन प्रमाण है [२२१२४ - (६२३४२) ३ = ६९५३३ यो.] ॥८८॥ नील पर्वतके नीचे वनवेदियोंसे युक्त और तोरणद्वारोंसे रमणीय जलसे परिपूर्ण कुण्ड हैं ॥ ८९ ॥ कुण्डोंका विष्कम्भ व आयाम बासठ योजन दो कोश और अवगाह दश योजन प्रमाण निर्दिष्ट किया गया है ॥९॥ रक्ता और रक्तोदा नामक वे नदियां विशाल कुण्डोंसे निकल कर संकुचित होती हुई विजयार्षकी गुफाओंमें प्रवेश करती हैं ॥९१॥ विजयाईकी उन गुफाओंके द्वारोंका विस्तार, आयाम तपा उत्सेध क्रमसे बारह, पचास और आठ योजन प्रमाण है ॥ ९॥ हानि-वृद्धिसे रहित उन गुफाओंके मध्यमें उक्त नदियां सर्वत्र समान रूपसे आठ योजन विस्तीर्ण कही गई है ॥९३ ॥ विजयाके भीतर उन्मग्ना और निमग्ना नामक दो दो नदियां उन रक्ता-रक्तोदा नदियों में प्रवेश करती हैं ॥ ९४ ॥ अपने अपने कुण्डसे निकलती हुई वे नदियां दो दो योजन दीर्घ, श्रेष्ठ चक्रवर्तियोंसे निर्मित उत्तम पुलोंसे शोमायमान तीरोंवाली, उत्तम तारणोंसे युक्त, सुवर्णमय वेदियोंसे वेष्टित, धनखण्डोंसे भूषित और मणिमय सोपानसमूहसे संयुक्त हैं ॥९५-९६ ॥ रका और
डश समुहे. २ पब बास. ३ उ श सीदावरिसरितारे, प सदावरसरितीरे, व सदावरती. .पणाम. ५बराविदिय..शय स्सीपरिदर्ण. उश उया. ८ उशबदों पर मास... अपत्य.
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