Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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१११ ]
जंबूदीपपणती
[ ६.१२०
ते वरप मपुष्पा विश्वंभायाम जोयणपमाणा । बाहल्लेण य कोरस जलातु मे उष्णया कोला ॥ १५४ वरकण्णिया दुकोसा कोसपमाणा हवंति वह पत्ता । णालाण रुंद कोसा सजोयण साहिया दोहा ॥ १२५ वेरुहियरयणणाला कं चणवरकष्णिया य णायया । विदुमपतेयारस सहरसगुणिदा समुद्दिट्ठा ॥ १२६ दिवामोदसुगंधा नववियसियपड मकुसुमसंकासा । पउम ति तेण णामा जिदिईदेहिं निष्ट्ठिा ॥ १२७ एर्य' च सबसहस्वं चालीसा तह सहस्ससंगुणिदा । एयं च सयं सोलस पउवाणं हॉति परिसंखा ॥ १९८ सत्र सयसहस्सा पंचसया तह असीदा य । पंचन्हं तु दहाणं परिमाणं हुति' पठमाणं ॥ १२९ जिदवरगुरूणं सुरिंदवरधिद्वैम उडचलणाणं । रयणमया वरपडिमा पडमिणिपुष्केसु निद्दिद्वा ॥ १३० "तेसु परमेसु णेयं कं चणमणिरयणसं वैसंकृण्णा । लंबंत कुसुममाला कालागरुकुसुमगंधवा ॥ १३॥ धुवंतघयायामुत्तादामेहिं सोहिया रम्मा | गोढरकवाडजुत्ता मणिवेदिविहूसिया दिष्वा ॥ १३९ गाडभदलविक्खंभा गाडवदोहा दहाण पडमेसु । गाउयच उभा गुणा उत्तुंगा होति पासादा' ॥ १३॥ सिधकुमारी या तह चैव य देवकुरुकुमारी य । सूरकुमारी सुबसा विज्जुप्पह तह कुमारी म ॥ १३४
व आयाम तथा एक कोश बाहल्यसे सहित और जलस दो कोश ऊंचे उत्तम कमळ पुष्प हैं || १२४ ॥ इनकी उत्तम कर्णिका दो कोश और पत्र एक कोश प्रमाण हैं । नालों का विस्तार एक कोश और दीर्घता दश योजनसे अधिक है || १२५ || इनके नाल वैडूर्यमणिमय और कर्णिकार्ये सुवर्णमय जानना चाहिये । उनके विद्रुममय पत्ते ग्यारह हजार क गये है ।। १२६ ।। चूंकि उक्त [ पार्थिव ] कमल दिव्य आमोदसे सुगंधित और नवीन विकसित पद्म कुसुमके सदृश हैं, इसीलिये जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा इनके नाम पद्म निर्दिष्ट किये गये हैं ॥ १२७ ॥ पद्मोंकी संख्या एक लाख चालीस हजार एक सौ सोलह ( १४० ११६ ) है ।। १२८ ॥ पांचों द्रोंके कमलोका प्रमाण सात लाख पांच सौ अस्सी ( १४०११६ × ५ = ७००५८० ) है ।। १२९ ॥ पद्मिनिपुष्पपर, जिनके चरणोंमें श्रेष्ठ सुरेन्द्रोंने अपने मुकुटको घिसा है अर्थात् नमस्कार किया है, ऐसी श्रेष्ठ जिनेन्द्र गुरुओं की रत्नमय उत्तम प्रतिमायें निर्दिष्ट की गई हैं || १३०|| दहें के उन कमलें। पर सुवर्ण, मणि एवं रत्नों के समूह से व्याप्त, लटकती हुई, कुसुममालाओं से सहित, कालागरु व कुसुमो की गन्धसे युक्त, फहराती हुई ध्वजापताकाओं से संयुक्त, मुक्तामालाओं से शोभित, रयणीय, गोपुरकपाटों ( गोपुरद्वारों ) से युक्त, मणिमय वेदियों से विभूषित, दिव्य, अर्ध कोश विस्तृत, एक कोश दीर्घ और चतुर्थ माग से हीन एकरें ( है ) कोश ऊंचे प्रासाद हैं ॥ १३१-१३३ ॥ निषधकुमारी, देवकुरुकुमारी, सूरकुमारी, सुलसाकुमारी तथा विद्युत्प्रभकुमारी नामक ये नागकुमारोंकी उत्तम कुमारियाँ
१श एवं
प्रत्याः । ५ प ब सब. ६
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पब होति. ३ उ विट्ठ, प ब भिट्ट, शनिठ्ठा ४ गाथेयं गोपलम्यते उ-शरा पाणादा ७ उ रा प च य.
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