Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-५. ३० ]
पंचमो उद्देसो
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वर्जिजदणी मर गयक क्केयणपण्डमरायणिवद्दाणि । घरवेदिपरिउडाणि य भवणाणं होति पीडाणि ॥ २१ सोलस जोयणदीदा विणि तदद्ध छच्च उत्तुंगा । बेगाउयभवगाढा मणिमय सो वाणपीओ ॥ २२ अङ्कुसरसयसंखा सोत्राणा होंति तेसु भवणेसु । पंचधणुस्सयतुंगा साद्दियपणवण्णऊण इक्केको ॥ २३ बेगाव पंचधणुस्सयपमानवित्थिष्णा पीठाणं वेदाभो निरिहा होंति णायन्वा ॥ २४ फलिद्दमणिभित्तिणिवद्दा नाणामणिरयणजालपरियरिया' । वेरुलियखंभप्रउरा सोवाणतिगेहिं संजुत्ता ॥ १५ दिग्वामोदसुगंधा देवच्छंदेति णामदो गेया । वरगम्भघरा दिट्ठा पद्दष्णकुसुमच्चणसणाहा ॥ २६ जिणइंदाणं पडिमा भगाइणिहणा सहावणिवण्णा । पंचधणुस्वयतुंगा वरवंजणरूक्खणोवेदा ॥ २७ भट्ठोसरसयसंखा णाणामणिकणयरयणपरिणामा । पीडेसु होंति णेया सयमेव जिर्णिदपडिमाभो ॥ २८ धवलाषप्तचामरइरिपीडम सतेय संजुत्ता । दुंदुहिम सोय तरुत्र र सुरकुसुमपडता ॥ २९ णाणाविवरणा भट्टोत्तरसयपमाण निषिद्वा । पत्तेयं पत्तेयं पुगेगाणं वियाणाहि ॥ ३०
कर्केतन और पद्मराग मणियोंके समूहसे निर्मित तथा उत्तम वेदीसे वेष्टित होते हैं ॥ २१ ॥ "सोलह योजन दीर्घ, इससे आधी विस्तीर्ण, छह योजन ऊंचीं, और दो गव्यूति प्रमाण अवगाह से सहित मणिमय सोपानपंक्तियां होती हैं ॥ २२ ॥ उन भवनोंमें एक सौ आठ सोपान होते हैं। इनमें से एक एक सोपान साधिक पचवन कम पांच सौ धनुष अर्थात् चार सौ चवालीस धनुष से कुछ अधिक ऊंचा होता है ॥ २३ ॥ पीठोंकी वेदिय दो गव्यूति ऊंची और पांच सौ धनुष प्रमाण विस्तीर्ण होती हैं, ऐसा निर्दिष्ट किया गया जानना चाहिये || २४ ॥ स्फटिक मणिमय मित्तिसमूहसे सहित, नाना मणि एवं रत्नोंके समूइसे व्याप्त, वैदूर्यमणिमय खम्भोंसे प्रचुर, तीन सोपानोंसे संयुक्त, दिव्य अमोदसे सुगन्धित, ओर बिखरे हुए पूजाकुसुम से सनाथ देवच्छन्द नामक श्रेष्ठ गर्भगृह कहे गये है ।। २५-२६ ॥ उन पीठों पर अनादि-निधन, स्वभावसे निष्पन्न, पांच सौ धनुष ऊंची, उत्तम व्यजन एवं लक्षणोंसे संयुक्त ऐसी नाना मणियों, सुबर्ण एवं रत्नोंके परिणाम रूप स्वयमेव एक सौ आठ जिनेन्द्रप्रतिमायें होती हैं ॥ २७-२८ ॥ उक्त प्रतिमायें धवल छत्र, चामर, हरिपीठ ( सिंहासन) और महान् तेज (भामण्डल) से संयुक्त तथा दुंदुभि, उत्तम अशोक वृक्ष और सुरों द्वारा की गई कुसुमवृष्टिसे व्याप्त होती हैं ॥ २९ ॥ एक एक ( प्रतिमाके ) समीप नाना प्रकारसे उपकरणों ( मंगलद्रव्यों) मेसे प्रत्येक प्रत्येक एक सौ आठ संख्या प्रमाण निर्दिष्ट किये गये हैं ॥ ३० ॥
१प ऊणएक्कक्क, व कुणक्कक्का शतूणइक्केक्क. १ उ पीयाणं, श पचियणं. ३ प प पिंजरिया. ४ उ रा देष दो सि. ५ उ सयमेव जिनिंदयं देवं श सथमेव दयं देवं.
जं. बी. १२.
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