Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
View full book text
________________
[तदिमो उहेसो]
संभवजिणं णमंपिय सईदसुरसंधुयं अचलेणाणं । संखवेण समग्गं सेलसहावं' पवक्खामि ॥" हिमवंतमहाहिमवं णिमहोणीलो य रुप्पसलो य । सिहरी विय बोधवा वंसधरा हॉति णिदिवा ॥१ हिमवंतसिरिसेका कणयमया विविहरयणसंछण्णा । जोयणसयउग्विद्धाभवगाहा हॉति पणवीसा ।। बावण्णसमधिरेया सहस्स परिमाण होति विस्थिण्णा । बारसकला वि या उणवीसगदेहि छेदेहि ॥ पुम्वावरेण दीहा एवत्तरि चदुसदों य पंचकला । चउरस चेव सहस्सा कणिपासेसु णिहिट्ठा ॥ ५ पश्चिमपुवायामो बत्तीसा णवसया य पण्णत्ता । चउवीस पि सहस्सा उक्कटतमेसु पासेसु ॥ पदस व सहस्सा पंचव सया हवंति भस्वीसा । एयार कला गेया कणिवणुपट्ट सेकाणं ॥ . पणुवीसं च सहस्सा बेसयतीसा य चउकला महिया । उक्कटुणुयपहा सेकणं हॉति णिहिट्ठा ॥ ८ पंचासा विणिसया पंचसहस्सा य मद्धकलसहिया। पण्णरस कला या पस्सभुजा पम्वदाणं तु॥९ बावण्णसया तीसा जोयणसंखापमाणमुहिट्ठा । भट्टमकलसंखा गाण चूली वियाणाहि ॥ ..
इन्द्रोंके साथ देवोंके द्वारा संस्तुत तथा अविनश्वर ज्ञानवाले सम्भव जिनको नमस्कार करके संक्षेपसे समस्त पर्वतोंके स्वरूपको कहते हैं ॥१॥ हिमवान् , महाहिमवान्, निषध, नील, रूप्य (रुक्मि ) और शिखरी, ये छह कुलाचल कहे गये हैं ॥२॥ इनमेंसे हिमवान् और शिखरी पर्वत सुवर्णमय, विविध रत्नोंसे व्याप्त, सौ योजन ऊंचे और पच्चीस योजन प्रमाण अवगाहसे सहित हैं ॥ ३ ॥ ये दोनों पर्वत एक हजार बावन योजन और एक योजनके उन्नीस भागोम से बारह भाग प्रमाण (१०५२१३) विस्तीर्ण हैं ॥ ४ ॥ उक्त दोनों कुलाचल कनिष्ठ पार्श्व भागोंमें अर्थात् भरत एवं ऐरावत क्षेत्रकी ओर चौदह हजार चार सौ इकहत्तर योजन और पांच कला (१४४७१५) प्रमाण पूर्व-पश्चिम दीर्थ कहे गये हैं ॥५॥ ये दोनों कुलपर्वत उत्कृष्टतम पार्श्वभागोंमें अर्थात् हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्रकी और चौबीस हजार नौ सौ बत्तीस योजन [ व एक कला ] ( २४९३११) प्रमाण पूर्व-पश्चिम आयत कहे गये हैं ॥६॥ इन शैलीका कनिष्ठ धनुषपृष्ठ चौदह हजार पांच सौ अट्ठाईस योजन और ग्यारह कला (१४५२८१६) प्रमाण जानना चाहिये ॥७॥ इन शैलोंका उत्कृष्ट धनुषपृष्ठ पंच्चीस हजार दो सौ तीस योजन चार कला अधिक (२५२३० १ ) कहा गया है ॥८॥ दोनों पर्वतोंकी पार्श्वभुजा पांच हजार तीन सौ पचास योजन और अर्ध कला सहित पन्द्रह कला (५३५०३१) प्रमाण जानना चाहिये ॥९॥ दोनों पर्वतोंकी चूलिका बावन सौ तीस योजन और साढ़े सात कला (५२३०६४) प्रमाण कही गयी हैं ॥ १० ॥
..........................................
१पब गर्मसिय इंदुसुर. २ उश अवलं. ३ उ श सोलसहावं. ४ उपप श सममिरेवा ५उपशचसहा ६७ पबश बहतीसा ७उपबश अफलं.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org