Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-१.२०१]
पउत्यो उद्देसो
सम्बदिसा परेंता' अणावमा तेयरूवसंपण्णा। जिणजम्मणमहिमाए गच्छति महाबला तुरया ॥ १९५ चुलसीदिलक्खसंखा वियरघडा गुलगुलंतगज्जता । गोखीरसंखधवला हस्थिघडा पढमकरछाए ॥९॥ भासढिसया णेया लक्खगुणा बालभाणुसमतेयाँ । पगलंतदाणगंडा हथिहरा विदियकचाए ॥ १९७ छत्तीसा तिण्णिसया हथिहरा सयसहस्ससंगुणिया । गिद्धतकणयवण्णा तदियाए हॉति कछाए ॥ १९८ बाहत्तरि छच्चसया लक्खगुणा सिरिसकुसुमसंकासा। उत्तंगदंतमुसला चउथीए हॉति ते णागा ॥१९९ तेरससयचउदाला वरिषदा सयसहस्ससंगुणिया। णीलुप्पलसंकासा पंचमिए होति करछाए ॥२.. छम्वीससया णेया भट्टासीदाय हॉति लक्खगुणा । जासवणकुसुमवण्णा हथिहरा तह य छट्टीए ॥२०॥ तेवण्णसया णेया छवित्तरि तह य होति लक्खगुणा । मंजणगिरिसमतेया इथिहडा सत्तमाए दु । २०२ भरसट्टा छच्चसया दसयसहस्सा हवंति लक्खगुणा । सत्त वि गयकच्छाणं परिसंखा होति णायम्वा ॥२०॥ कन्छपमाणं विरलिय इच्छगुणं तेसु उवरि दाऊणं । भण्णोषणभस्थण य लद्धेण य रूवरहिदेण ॥ २..
धोड़े सब दिशाओंको पूर्ण करते हुए जिनजन्ममहिमामें जाते हैं ॥१९५॥ प्रथम कक्षामें हर्षसे गुल-गुल गरजनेवाले चौरासी लाख हाथियों के समूह गोक्षीर अथवा शंखके समान धवळ होते हैं ।। १९६ ।। द्वितीय कक्षामै गण्डस्थलसे मदको बहानेवाले उन एक लाखसे गुणित एक सौ अड़सठ अर्थात् एक करोड़ अड़सठ लाख हाथियों की घटायें बाल सूर्यके सदृश कान्तिवाली जानना चाहिये ।। १९७ ॥ तृतीय कक्षामें एक लाखसे गुणित तीन सौ छत्तीस ( ३३६००.००) हाथियोंकी घटायें अग्निसंयोगसे शुद्ध किये गये सुवर्ण जैसे वर्णवाली होती हैं ॥ १९८ ॥ चतुर्थ कक्षामें उन्नत दांत रूपी मूसलोंसे सहित वे एक लाखसे गुणित छह सौ बहत्तर (६७२००००० ) हाथी शिरीष कुसुमके सदृश होते हैं ॥ १९९ ॥ पंचम कक्षामें एक लाखसे गुणित तेरह सौ चबालीस (१३१४०००००) हाथियोंकी घटायें नीलोत्पल के सदृश होती हैं ॥ २०॥ छठी कक्षामें एक लाखसे गुणित छब्बीस सौ अठासी ( २६८८०००००) हाथियोंकी घटायें जपा कुसुम जैसे वर्णवाली होती हैं ॥ २०१॥ सातवीं कक्षामें एक लाखसे गुणित तिरेपन सौ छयत्तर ( ५३७६०००००) हाथियोंकी घटायें अंजनगिरिके समान कान्तिवाली होती हैं ॥ २०२ ॥ सातों कक्षाओंके हाथियोंकी संख्या एक लाखसे गुणित दश हजार छह सौ अड़सठ (१०६६८०००००) जानना चाहिये ॥ २०३ ॥ कक्षाके प्रमाणका विरलन कर उनके ऊपर इच्छित गुणकार (२) को देकर परस्पर गुणा करनेसे प्राप्त हुई राशि से एक कम करनेपर जो शेष इच्छित गुणकार राशि रहे उससे फिर भादिधनको गुणित कर जो प्राप्त हो उतना सब कक्षाओंका इच्छित धन होता है (देखिये पीछे गा. १७१-७२ ) ॥ २०४-२०५ ॥ प्रत्येक कक्षाक मागे पटु पटह, शंख, मर्दक मौर
१श पूता. १श तेया. ३श वियहव्वा गुरुकुलं.त. ४ उशतेय. ५१श सिरस, पब सरिस. ६श सघियसकासहस्स.. श ओवरि. ८उशदाओणं.
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