Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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:-१. २७)
पढमो उद्देसो
पणुवीसकोडिकोडी उद्धारपमाणपल्लसंखाए । जत्तियमेत्ता रोमा तावदिया होति दीउदधी ॥११ रविमंडलं व वट्टो विक्खंभायामजोयणालक्खो । दीवोदधीण मज्झे जंबूदीवो समुहिटो ॥ २० परिधी तस्स दुणेया लक्खा तिण्णेव सोलससहस्सा | बेसयसत्तावीसा जोयणसंखा पमाणेणं ॥ २१ गाउ तिणि वि जाणसु अट्ठावीसा सयं च धणुसंखा | तेरस अंगुलपव्या अद्वंगुल मेव सविसेसं ॥ २२ विक्खंभेणब्भत्थं विक्खंभ' दसगुणं पुणो काउं। जं तस्स वग्गमूल परिरयमेदं वियाणाहि ॥ २३ विक्खंभचदुब्भागेण संगुणं' होइ परिधिपरिमाणं । पदरगदं खेत्तफलं लई रविमंडलाण तहा ।। २४ सत्तसयणउदिकोडीसमधियछप्पण्णसयसहस्साई। चदुणउदिं च सहस्सा दिवसयजोयणा णेया ॥ २५ जोयणअट्टच्छेधा विउलामलवज्जवेदिया दिव्वा । परिवेढिदूण अच्छदि जंबूदीवस्स सम्वत्तो ॥२६ मूले बारह जोयण मज्झे भटेव जोयणा णेया । उवार चत्तारि हवे वित्थारो तीए जगदीए ॥ २७
जितने रोम समा सकते हो उतने द्वीप-समुद्र हैं ॥१९॥ द्वीप समुद्रोंके मध्यमें सूर्यमण्डलके सदृश गोल और एक लाख योजन प्रमाण विष्कम्भ व आयामसे सहित जम्बूद्वीप कहा गया है ॥२०॥ उसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस प्रमाण योजन, तीन गव्यूति, एक सौ अट्ठाईस धनुष, तेरह अंगुल और आध अंगुलसे कुछ अधिक जानना चाहिये ॥२१-२२ ॥ विष्कम्भसे गुणित विष्कम्भको अर्थात् विष्कम्भके वर्गको दसगुणा करके पुनः उसका जो वर्गमूल हो वह परिधिका प्रमाण जानना चाहिये ॥ २३ ॥
उदाहरण- जम्बूद्वीपका विष्कम्भ १००००० यो; V१०००००-१०३१६२२७ यो. ३ कोश १२८ धनुष १३३ अंगुलसे कुछ अधिक, यह जम्बूद्वीपकी परिधिका प्रमाण है।
परिधिप्रमाणको विष्कम्भके चतुर्थ भागसे गुणा करनेपर रविमण्डलके सदृश गोल क्षेत्रोंका प्रतरगत क्षेत्रफल प्राप्त होता है ॥ २४ ॥
उदाहरण- परिधि साधिक ३१६२२७३ यो.; ३१६२२७३ ४ १ ० ० ० ०० = साधिक ७९०५६९४१५० यो. जम्बूद्वीपका क्षेत्रफल ।
जम्बूद्वीपका क्षेत्रफल सात सौ नब्बै करोड़ छप्पन लाख चौरानबै हजार एक सौ पचास योजन प्रमाण जानना चाहिये ॥ २५ ॥ आठ योजन ऊंची, विशाल दिव्य निर्मल वज्रमय वेदिका जम्बूद्वीपको चारों ओरसे वेष्टित करके स्थित है ॥ २६ ॥ उस जगतीका विस्तार मूलमें बारह योजन, मध्यमें आठ ही योजन और ऊपर चार योजन प्रमाण जानना
१पब पणवीस. २पब दीवुदधी. ३पय गाउअ.४उ विवखंमेण भरथं विक्खम,ब विक्खंतेणप्त विक्वंत, श विभेण य भत्तं विक्वंमं. ५ उ विक्खंभवदुभागण य संगुणं, ब विक्खंतबहुभागेण संगुणं, श मिक्खंभ चमोगण य संगणं. ६ उ अड्डठेघा; प अटुग्छेदा, व अटुछेधा, श अच्छेचा. ७ प प परिवेटदूण
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