Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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अन्य ग्रंथोंसे तुलना ६ बृहत्क्षेत्रसमास-इसका विशेष परिचय तिलोयपण्णत्तीकी प्रस्तावना (भा. २, पृ. ७३-७७) में दिया गया है।
जंबूदीवपण्णत्ती और वृहत्क्षेत्रसमासमें निम्न गाथायें समानस्वरूपसे पायी जाती हैं , उनमें कोई उखनीय भेद नहीं है
जं. प. छठा उ. गा. ९, १०, ११, १२, बारहवां उ. ११०.
बृ. स. प्र. अ. गा. ३६, ३९, ४१, ३८, ३९५. इनके अतिरिक्त निम्न गाथा कुछ शब्दपरिवर्तनके साथ इस प्रकार उपलब्ध होती है--
जस्थिच्छसि विक्खमं कंचणसिहरा दु ओवदित्ताणं । तं सगकायविभत्तं सिरसहिदं जाण विखंमं । जं. ६-४७
जत्थिच्छसि विक्खमं मंदरसिहराहि उबइत्ताणं ।
एक्कारसहि विभत्तं सहस्ससहियं च विक्खमं ॥ बृ. १-३०७ ७ वैदिक ग्रंथो से तुलना-- जैन भौगोलिक ग्रन्थोंमें भूभागका वर्णन करते हुए यह बतलाया है एक लाख योजन विस्तृत वलयाकार जंबूद्वीपके ठीक बीचमें मेरु पर्वत है। मेरुके दक्षिण महाहिमवान् और निषध ये तीन पर्वत तथा इनके कारण विभागको प्राप्त हुये भरत, हैमवत और हरिवर्ष ये तीन क्षेत्र हैं। इसी प्रकारसे उसके उत्तरमै नील, रुक्मि और शिखरी पर्वत तथा रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावतक्षेत्र स्थित हैं। निषध और नील पर्वतोंके अन्तरालमें विदेह क्षेत्र अवस्थित है। यहां मेरुके ईशान कोणमे माल्यवान् , आमेयमें सौमनस, नैऋत्यमें विद्युत्प्रभ और वायव्यमें गन्धमादन नामके ये चार गजदन्न पर्वत हैं। इनमें सौमनस और विद्युत्प्रभ गजदन्तोंके मध्यमें अर्ध चन्द्रके आकारमें देवकुरु तथा गन्धमादन और माल्यवान् गजदन्तोंके मध्यमें उत्तरकुरु क्षेत्र अवस्थित है। इस प्रकार जंबूद्वीपमें इन दो क्षेत्रोंके साथ नौ वर्ष है।
ठीक इसी प्रकारसे वैदिक सम्प्रदायके भौगोलिक ग्रन्थों में भी एक लाख योजन विस्तारवाले गोल जंबूद्वीपका वर्णन पाया जाता है। यहां भी जंबूद्वीपके मध्यमें मेरु पर्वतका अवस्थान है। इस मेरुके चारों
ओर चतुष्कोण इलावृत नामक वर्ष अवस्थित है। इलावृतके पूर्वमें उसकी सीमाभूत माल्यवान् पर्वत तथा उसके आगे पूर्व समुद्र तक फैला हुआ भद्राश्व वर्ष है। उक्त इलावृतके पश्चिममें गन्धमादन पर्वत और उसके आगे पश्चिम समुद्र तक फैला हुआ केतुमाल वर्ष है । इलावृतके दक्षिगमें समुद्रकी ओरसे क्रमशः हिमवान. हेमकट और निषध ये तीन तथा उसके उत्तर में नील, श्वत और शृंगवान् ये तीन इस प्रकार छह पर्वत स्थित हैं । दक्षिण समुद्र और हिमवान्के मध्यमें भारतवर्ष, हिमवान् और हेमकूटके मध्य में किम्पुरुष, हेमकट और निषधके मध्यमें हरियर्ष, नील और श्वेत पर्वतोंके मध्यमें रम्यकवर्ष, श्वेत और शंगवान्के मध्यमें हिरण्यमय वर्ष, तथा शृंगवान् और उत्तर समुद्रके मध्यमें उत्तरकुरु वर्ष अवस्थित है। उपर्युक्त छह क्षेत्रों में भारत वर्ष और उत्तरकुरु धनुपाकार तथा शेष चार क्षेत्र और उक्त छह पर्वत पूर्वसे पश्चिम समुद्र तक दण्मुयत् आयत हैं । इस प्रकार इलावृत, भद्राश्व और केतुमाल वर्षों को लेकर जंबूद्वीपमें नौ वर्ष (क्षेत्र) अवस्थित है।
१ वायुपुराण, विष्णुपुराण, कम और मत्स्यपुराण आदि । २ श्वेत (रुक्मि), श्रृंगवान् (शृंगी शिखरी)।
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