Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिकसूत्रे सयतलोवमे सुरम्मे ईहामिय-उसम-तुरग-गर-मगर-विहग-बालगकिण्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्ति-चित्ते आईश्यामः । आकारस्तस्य कीदृश इत्याह-'अदुसिरे' अष्टशिरस्कः-अष्टकोण इत्यर्थः । 'आयंसयतलोवमे आदर्शतलोपमः-आदर्शतलस्य-दर्प तलस्योपमा यस्य स तथा। 'सुरम्ने अतीवरमणीयः। 'ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग बालग-किण्णर-रुरु-सरभ-चमरकुंजर-वणलय-पउमलय-भत्ति-चित्ते ईहामृग-वृषभ-तुरग-नर-मकर-विहग-व्यालककिन्नर-रुरु-शरभ चमर-कुञ्जर-बनलता-पमलता-भक्ति-चित्रः। तत्र-ईहामृगाः-वृकाः 'भेडिया' इति भाषाप्रसिद्धाः । वृषभाः-बलीवर्दाः, तुरगाः-अश्वाः, नराः-मनुष्याः, मकराः-ग्राहाः, विहगाः-पक्षिणः, व्यालकाः-सर्पाः, किन्नराः-व्यन्तरदेवाः, रुव:मृगाः, शरभाः-अष्टापदाः, कुञ्जराः-हस्तिनः, वनलताः-प्रसिद्धाः, पद्मलता:-कमललताः,
मरकत-पन्ना, मसार-पत्थर को चिकना करने वाला पत्थर अथवा कसौटी, कटित्रकृष्णचमडे की बनी हुई वस्तुविशेष और नयनकीका नेत्र की कनीनिका-इनसब के पुंज जैसा इसका वर्ण था । (गिद्धघणे) वह सजल-मेघ के समान श्याम था । [ अट्ठसिरे ] आठ इसके कोने थे । [ आयंसयत्लोवमे ) इसका तलभाग आदर्श-काचदर्पण जैसा चमकीला था । (मुरम्मे) इससे यह देखने में विशेषकर रमणीय लगता था । (ईहामिय उसभ तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किण्णर रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलयपउमलय-भत्ति-चित्ते ) ईहामृग-वृक-भेडिया, वृषभ बलीवर्द,तुरग-अश्व, नर-मनुष्य, मकर-ग्राह, विहग-पक्षी, व्यालक-सर्प, किन्नर-व्यन्तरदेव, रुरु-मृग, सरभ-अष्टापद, (मरगय-मसार-कलित्त-णयणकीय-रासि-वण्णे) भ२४त-पन्ना, मसा२--पत्थरने थिए। કરવાવાળે પત્થર અથવા કસોટી, કટિત્ર–કૃષ્ણ ચામડાની બનાવેલી વસ્તુ વિશેષ અને નયનકીકા-આંખની કનીનિકા-એ બધાના પુંજ જેવો તેને વર્ણ डतो. (णिद्धघणे) ते २८ मेघना वो श्याम डतो. (अट्ठसिरे) 13 तेना भए ता. (आयसयतलोवमे) सेना तणिय माग माश---य--पर दे। यही तो. (सुरम्मे) तेथी ते नेवामा विशेष ४रीने २०७nand sतो. (ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किण्णर-रुरु-सरभ-चमर कुंरेजर - वणलय - 'पउमलय-भत्ति-चित्ते) घडामृग-४, वृषम- 04.08, तु२॥-4व, न२-मनुष्य, भ४२. भाड, विड-पक्षी, व्यास--सपी, सिन्नर-व्यन्त२४१, ३३-भृग, २-मटायह, ચમર, કુંજર-હાથી,વનલતા તેમજ પદ્મલતા એ બધાંનાં ચિત્રો વડે એ સુંદર