Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिक
जक्ख- रक्खस- किन्नर - किंपुरिस - गरुल- गंधव्त्र - महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिजा, निग्गंथे पावयणे णिस्संकिया णिक्कंखिया निव्वितिगिच्छा लट्ठा गहिया किंनर - किंपुरुष - गरुड - गन्धर्व - महोरगादिकैःकैः - तत्र देवाः = वैमानिकाः असुरा:--असुरकुमाराः, नागाः=नागकुमाराः, असुरा नागा इमे उभये भवनपतयः; यक्षाः राक्षसाः किंनराः किंपुरुषाः - एते चत्वारो व्यन्तरविशेषाः, गरुडाः गरुडध्वजाः सुपर्णकुमाराः भवनपतिविशेषाः, गन्धर्वाः महोरगाव व्यन्तरविशेषाः, तत्प्रभृतिभिः देवगणैः ' निग्गंथाओ पावयणाओ' नैर्ग्रन्थात् प्रवचनात् ' अणइक्कमणिज्जा' अनतिक्रमणीयाः = अचालनीयाःनिर्ग्रन्थप्रवचनात् तान् चालयितुं देवादयोऽप्यसमर्था इति भावः । ' निग्गंथे पावयणे ' नैर्ग्रन्थे प्रवचने ' निस्संकिया ' निःशङ्किताः = शङ्कारहिताः, 'निक्कंखिया ' निष्काङ्क्षिताः= परमतानभिलाषिणः, ' निव्वितिमिच्छा' निर्विचिकित्साः - फलं प्रति संदेहवर्जिताः, 'लद्धड्डा ' लब्धार्थाः - अर्थश्रवणात्, 'गहियट्ठा ' गृहीतार्थाः - अर्थावधारणात्, 'पुच्छि - रक्खस- किंनर - किंपुरिस - गरुल- गंधव्त्र - महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयाओ अइकमणिज्जा) देव, असुरकुमार, नागकुमार, यक्ष, राक्षस, किंनर, किंपुरुष, गरुड, सुपर्णकुमार, गन्धर्व एवं महोरग इत्यादिक देवगणों द्वारा भी जो निर्ग्रन्थ प्रवचन से एक बाल भी विचलित नहीं किये जा सकते हैं, (निग्गंथे पावयणे णिस्संकिया किंखिया णिव्वितिमिच्छा लट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा अभिगयट्ठा) निर्ग्रन्थप्रवचन में जिनकी श्रद्धा निःशंकित है, निष्कांक्षित है- परमत की ओर जिनके हृदय में जाने की अथवा उसे सराहने आदि की थोड़ी सी भी अभिलाषा नहीं है, निर्विचिकित्सागुण से जो भरपूर हैं, फल के प्रति जिनकी श्रद्धा संदेह से सर्वथा रिक्त है, जो लब्धार्थ हैं, गृहीतार्थ
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पावणयाओ अणइक्कम णिज्जा ) हेव, मसुरडुभार, नागडुभार, यक्ष, राक्षस, डिनर, छिंयुरुष, गरुड, सुपर्णा कुमार, गंधर्व तेभन महोरग त्या हि देवગણેા દ્વારા પણ જે નિગ્રંથ પ્રવચન વડે એક વાળ જેટલા પણ વિચલિત उरी शाता नथी, ( निम्गंथे पायवणे णिस्संकिया, णिक्कंखिया णिव्वितिगिच्छा लट्ठा गहिट्ठा पुच्छियट्ठा अभिगयट्ठा ) निर्ऋन्थ अवयनमां नेभनी श्रद्धा नि:શકિત છે, કાંક્ષા વગરના છે—પરમતની તરફ જવાની જેમના હૃદયમાં અભિલાષા જરા પણ નથી, અથવા પરમતની પ્રશ'સા આદિ કરવાની કિંચિત પણ અભિલાષા નથી, નિવિચિકિત્સા-ગુણથી જે ભરપૂર છે. ફળના તરફ
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