Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 755
________________ ६९४ औपपातिक हस्सपंचक्खरुच्चारणद्धाए असंखेज्जसमइयं अंतोमुहुत्तियं सेलेसिं पडिवज्जइ, पुव्वरइयगुणसेढीयं च णं कम्मं तीसे सेलेसिमद्धाए अयोगत्वं प्राप्नोति, ‘ अयोगत्तं पाउणित्ता' अयोगत्वं प्राप्य, 'ईसिंहस्सपंचक्रवरुच्चारणद्धाए ' ईषद्ध्रस्वपश्चाऽक्षरोच्चारणाऽद्धायाम् - ईषत् - अल्पानि यानि हूस्वानि पञ्चाक्षराणि तेषां यदुच्चारणं तस्य याऽद्धा = कालः सा तथा तस्याम्, इदमुच्चारणं न द्रुतं न विलम्बितं किन्तु मध्यममेव गृह्यते, — असंखेज्जसमइयं ' असंख्येयसमयिकाम्, 'अंतोमुहुत्तियं ' आन्तमौहूर्तिकीं ' सेलेसिं 'शैलेशी - शैलानामीशः शैलेशो मेरुः, तस्येव या स्थिरता=साम्याद्यवस्था सा शैलेशी ताम्, अथवा - शीलेश :- सर्वसंवररूपचारित्रवान्, तस्येयमवस्था योगनिरोधरूपा शैलेशी तां, शैलेश्यवस्थायां केवली वेदनीयादिकर्मचतुष्टयं क्षपयति, तत्प्रकार माह' पुव्वरइय ' इत्यादि । 'पुव्वरइयगुणसेढीयं च णं कम्मं' पूर्वरचितगुणश्रेणिकं च कर्म, पूर्वं = शैलेश्यवस्थायाः प्राग् रचिता गुणश्रेणी यस्य तत्तथा, का नाम गुणश्रेणी: उच्यतेणइ)अयोगि—अवस्था को प्राप्त हो जाते हैं, ( पाउणित्ता ईसिं-हस्स - पंचक्रखरु - चारण-द्धा असंखेज्जसमइयं अंतोमुहुत्तियं) अयोगी - अवस्था को प्राप्त हो जाने के बाद हूस्व पांच अक्षर के उच्चारण काल - प्रमाण समय में, अर्थात् असंख्यात समय के अंतर्मुहूर्त जैसे काल में (सेलेसिं पडिवज्जइ) वे शैलेशी - अवस्था को प्राप्त करते हैं, अथवा सर्व कर्मों के संवररूप चारित्र वाले की अवस्था को - योगनिरोधरूप अवस्था प्राप्त करते हैं । इस शैलेशी-अवस्था में केवली किस प्रकार से वेदनीय आदि चार अघातिया कर्मों को क्षय करते हैं, इस बात को प्रगट करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि (पुव्त्ररइयगुणसेढीयं च णं कम्मं तीसे सेलेसिमद्धाए असंखेज्जाहिं गुणसेढीहिं अनंते कम्मंसे खवयं ते) शैलेशी-अवस्था के पहिले जिन कर्मों की गुणश्रेणी रची-जाय वे गुणश्रेणिक कर्म है । गुणछे. ( पाउणत्ता ईसिंहस्सपंचक्खरुच्चारणद्धाए असंखेज्जसमइयं अंतोमुहुत्तियं ) અયેાગી–અવસ્થાને પ્રાપ્ત થઇ ગયા પછી હસ્વ પાંચ અક્ષરના ઉચ્ચારણકાલ– પ્રમાણ સમયમાં, અર્થાત્ અસંખ્યાત સમયના અંતર્મુહૂત જેવા કાલમાં ( सेलेसिं पडिवज्जइ ) तेथे। शैलेशी व्यवस्थाने आप्त ४२ छे, अथवा सर्वકર્મીના સંવરરૂપ ચારિત્રવાળાની અવસ્થાને-યાગનિરોધરૂપ અવસ્થાને પ્રાપ્ત કરે છે. આ શૈલેશી અવસ્થામાં કેવલી કેવા પ્રકારથી વેદનીય આદિ ચાર અધાતિયા કર્મના ક્ષય કરે છે? એ વાતને પ્રકટ કરતાં સૂત્રકાર કહે छे े ( पुव्वरइयगुण सेढीयं च ण कम्मं तीसे सेलेसिमद्धाए असंखेज्जाहिं गुणसेढीहिं अणते कम्मंसे खवयंते ) शैलेशी व्यवस्थानी पडेसां ने उर्मोनी शुशुश्रेणी रथी को

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