Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 798
________________ ७३७ पीयूषवर्षिणी-टीका, शास्त्रोपसंहारः बाधं व्याघातवर्जितम् अणोवमं अनुपमम्=सादृश्यवर्जितं सिद्धिस्थानं 'पत्ता' प्राप्ताः अधिष्ठिताः सिद्धाः, 'सुहं पत्ता' सुखं प्राप्ताः सुखमधिगताः, अतएव 'सुही' सुखिनः सन्तः सव्वमणागयमद्धं' सर्वमनागताद्धं सर्वं भविष्यत्कालं 'चिट्ठति' तिष्ठन्तोति ॥ सू. १२८ ॥ ॥औपपातिकं समाप्तम् ॥ ॥ इति श्रीविश्वविख्यात-जगद्वल्लभ-प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषाकलितललितकलापालापक-प्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक - वादिमानमर्दक - श्रीशाहूछत्रपतिकोल्हापुरराजप्रदत्त-'जैनशास्त्राचार्य'-पदभूषित-कोल्हापुरराजगुरुबालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्य-श्रीघासीलालव्रतिविरचिता औपपातिक-सूत्रस्य पीयूषवर्षिण्याख्या व्याख्या सम्पूर्णा ॥ (अब्बाबाहं अणोवमं पत्ता) प्राप्त हुए उस मुक्ति स्थान में (सव्वमणागयमद्धं चिट्ठति सुही मुहं पत्ता) अनन्तकाल तक सदा सुखी ही रहते हैं। ॥ सू. १२८ ॥ ____इति औपपातिकसूत्र का हिन्दी अनुवाद सम्पूर्ण ॥ गयमद्धं चिट्ठति सुही सुहं पत्ता) अन सुधा सुभी०४ २७ छ. (सू. १२८) ઈતિ ઔપપાતિક સૂત્રને ગુજરાતી અનુવાદ સંપૂર્ણ

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