Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 762
________________ पीयूषवर्षिणी-टीका, सू. ९३, ९४ सिद्धानां साथपर्यवसितत्वादिवर्णनम् ७०१, ___मूलम्--से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-ते णं तत्थ सिद्धा. भवंति सादीया अपजवसिया जाव चिट्ठति ? गोयमा ! से जहा णामए बीयाणं. अग्गिदड्ढाणं पुणरवि अंकुरुप्पत्ती ण भवइ, 'सासयमणागयद्धं कालं चिति' शाश्वतम् अमागताद्धं कालं भविष्यत्कालं “चिटुंति' तिष्ठन्ति ॥ सू० ९३ ॥ ____टीका-गौतमः पृच्छति-'सेकेणद्वेणं भंते'! इत्यादि । 'भंते !' हे भदन्त ! 'से केणटेणं' अथ केनाऽर्थेन केन कारणेन ‘एवं वुच्चई' एवमुच्यते. तेणं तत्थ सिद्धा भवंति' ते खलु तत्र सिद्धा भवन्ति, सादीया' सादिका 'अपज्जवसिया' अपर्यवसिता 'जाव चिट्ठति' यावत् तिष्ठन्ति ?, भगवानाह-'गोयमा!' हे गौतम ! ' से जहा णामए' तद् यथा नाम 'बीयाणं अग्गिदड्ढाणं' बीजानामग्निदग्धानां 'पुणरवि' पुनरपि — अंकुरुप्पत्ती ण भवइ ' अङकुरोत्पत्तिर्न भवति, ‘एवामेव सिद्धाणं कम्मबीए (विसुद्धा) कर्मों के विनाश से उद्भूत आत्मविशुद्धि से युक्त हो कर (सासयमणागयद्धं कालं चिदंति) भविष्यत्काल में शाश्वतरूप से सिद्धावस्था से संपन्न रहा करते हैं । अर्थात्-सिद्ध भगवान् सादि-अनंत रहा करते हैं, एवं शुद्ध आत्मगुणों के पूर्ण विकास से वे सिद्ध-अवस्था में अनंतकालतक विराजित रहते हैं । सू० ९३ ॥ 'सेकेणणं' इत्यादि। प्रश्न- (भंते !) हे भदंत ! (से केणटेणं एवं वुच्चइ) " वे सादि अपर्यवसित होते हैं" यह आप किस कारण से कहते हैं ? उत्तर-(गोयमा!) हे गौतम ! सुनो! (से जहा णामए बीयाणं अग्गिदड्ढाणं पुणरवि अंकुरुप्पत्ती ण भवइं) जिस प्रकार अग्नि मात्भपिशुद्धिथा युत धने (सासयमणागयद्धं कालं चिटुंति) भविष्यमा शाश्वतરૂપથી સિદ્ધાવસ્થાથી યુકત રહ્યા કરે છે. અર્થાત્ સિદ્ધ ભગવાન સાદિ અનંત રહ્યા કરે છે, તેમજ શુદ્ધ આત્મગુણના પૂર્ણ વિકાસથી તેઓ સિદ્ધ અવસ્થામાં मनात सुधी विराभान २९ छे. (सु. ६3). . ‘से केणगुणं' छत्यादि. :: , .. प्रश्न-( भंते !) महत ! ( से केणठेणं एवं वुच्चइ ) “तया साह अपर्यवसित होय छे" मम मा५शु ४२Yधी ४ो छ. ? त्तर-(गोयमा !) गौतम ! समी . (से जहा णामए बीयाणं अग्गिदड्ढाणं पुणरवि अंकुरुप्पत्ती ण भवइ ) २ प्रारे निथी मणेता मीमा शने १२ अपन्न ४२वानी

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