Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 785
________________ ७२४ औपपातिकसूत्रे अण्णोण्णसमोगाढा, पुट्टा सव्वे य लोगंते ॥ सू० १५१ ॥ मूलम्-फुसइ अणंते सिद्धे, सव्वपएसेहि णियमसा सिद्धो। 'तत्थ' तत्र देशे 'अणंता' अनन्ताः-अविद्यमानोऽन्तो येषां तेऽनन्ता , 'भवक्खयविमुक्का' भवक्षयविमुक्ताः-भवक्षये सति विनमुक्ताः, अनेन स्वच्छयाऽवतरणशक्तिमसिद्धव्यवच्छेदमाह। 'अण्णोण्णसमोगाढा' अन्योऽन्यसमवगाढाः परपरस्परं सम्यक् अवगाढाः-धर्मास्तिकायादिवत् संमिलिताः, 'सव्वे य' सर्वे च लोगंते' लोकान्ते -लोकाग्रभागे अलोकेन 'पुढा' स्पृष्टाः- लग्नाः, प्रतिरुद्धत्वात् , तत्र धर्मास्तिकायाभावादिति । अत एव-'लोकाग्रे च प्रतिष्ठिता' इत्युक्तम् । सू० ११५ ॥ टीका—'फुसइ' इत्यादि । 'सिद्धे' सिद्धः एकः सिद्धः 'णियमसा' नियमेन 'जत्थ य एगो सिद्धो' इत्यादि । (जस्थ य एगो सिद्धो) जिस सिद्धक्षेत्र में एक सिद्ध भगवान विराजते हैं, (तत्थ अणंता) उसी सिद्रक्षेत्र में अनंत सिद्ध विराजमान रहते हैं। (भवक वयविमुक्का) उनके भवका क्षय सर्वथा हो चुका है। (अण्णोण्णसमोगाढा पुट्ठा) जिस प्रकार एक ही स्थान पर धर्मादिक द्रव्य परस्पर अवगाढरूप में स्थित होकर रहते हैं उसी प्रकार ये सिद्ध आत्मा भी एक ही स्थान पर परस्पर में अबगाढरूप से रहते हैं। फिर भी अपने २ चैतन्यस्वरूप का परित्याग नहीं करते हैं। (सव्वे य लोगते) धर्मास्तिकायका अभाव होने से ये लोक के अग्रभाग में स्पृष्ट रहते हैं। सू. ११५ ॥ ‘फुसइ अणंते सिद्धे' इत्यादि । (फुसइ अणंते सिद्धे सव्वपएसेहि णियमसा सिद्धो) एक सिद्ध 'जत्थ य एगो सिद्धो' त्याहि. __ (जस्थ य एगो सिद्धो) के क्षेत्रमा से सिद्ध भगवान गिरे छ, (तत्थ अणता ) ते सिद्धक्षेत्रमा सनत सिद्ध विमान डाय छे. (भवक्खयविमुक्का) तमना सपनो क्षय सर्वथा २४ यूथ्यो छे. ( अण्णोण्ण समोगाढा पुट्ठा) प्रा२ मे स्थान ५२ यहि द्रव्य ५२५२ २मગાઢરૂપમાં સ્થિત થઈ રહે છે તેજ પ્રકારે તે સિદ્ધ આત્મા પણ એકજ સ્થાન પર પરસ્પરમાં અવગાઢરૂપથી રહે છે. છતાં પણ પોતપોતાના ચિતન્યસ્વરૂપો પરિત્યાગ કરતા નથી. ધર્માસ્તિકાયને અભાવ હોવાથી તેઓ લો ના અગ્ર मागमा स्पृष्ट (सी) २९ छे. (सू. ११५) 'फुसइ अणंते सिद्धे' त्याहि. (फुसइ अणंते सिद्ध सव्वपएसेहि णियमसा सिद्धो) मे सिद्ध भगवान्

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