Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 768
________________ पीयूषषिणी-टीका,स.९९,सिद्धानां निवासस्थानविषयेभगवद्गौतमयोःसंपाद:७०७ वसंति ? णो इणहे सम?! एवं सव्वेसिं पुच्छा, ईसाणस्स सणंकुमारस्स जाव अच्चुयस्स गेवेजविमाणाणं अणुत्तरविमाणाणं ॥ सू० १००॥ मूलम्-~-अस्थि णं भंते ! ईसीपब्भाराए पुढवीए अहे सिद्धा परिवसंति ?, णो इणहे समठे ॥ सू० १०१ ॥ पुच्छा' एवं सर्वेषां पृच्छा, 'ईसाणस्स सणकुमारस्स जाव अच्चुयस्स गेवेज्जविमाणाणं अणुत्तरविमाणाणं' ईशानस्य सनत्कुमारस्य यावत्-अच्युतस्य अवेयकविमानानाम्, अनुत्तरविमानानाम् ॥ सू० १०० ॥ टीका-..'अत्थि' इत्यादि । गौतमः पृच्छति-'अत्थि णं भंते !' अस्ति खल 'अत्थि णं भंते !' इत्यादि । प्रश्न-(भंते !) हे भदंत ! (अस्थि णं सोहम्मस्स कप्पस्स अहे सिद्धा परिवसंति)क्या सिद्ध भगवान् सौधर्म कल्प के नीचे रहते हैं ? उत्तर-(गोयमा !) हे गौतम ! (णो इणढे समढे) यह अर्थ समर्थ नहीं है। (एवं सव्वेसिं पुच्छा ईसाणस्स सणंकुमारस्स जाव अच्चुयस्स गेवेज्जविमाणाणं अणुत्तरविमाणाणं) इसी तरह गौतम की पृच्छा, ईशान, सनत्कुमार आदि से लेकर अच्युत देवलोक तक के ग्रैवेयक विमानों एवं अनुत्तरविमानों के विषय में भी जाननी चाहिये, और प्रभु का निषेधात्मक उत्तर भी इसी प्रकार समझ लेना चाहिये ॥ सू० १०० ॥ 'अत्थि णं भंते !' त्याहि. प्रश्न-(भंते ! ) हे महत! ( अत्थि णं सोहम्मस्स कप्पस्स अहे सिद्धा परिवसंति ) शु सिद्ध मान सौधर्भपनी नीय २७ छ ? उत्तर-(गोयमा !) गौतम! (णो इणठे समठे) मा मर्थ समर्थ नथी. (एवं सव्वेसिं पुच्छा ईसाणस्स सणकुमारस्स जाव अच्चुयस्स गेवेज्जविमाणाणं अणुत्तरविमाणाणं) એવી રીતે ગૌતમના પ્રશ્નો ઇશાન, સનકુમાર આદિથી લઈને અશ્રુત દેવલોક સુધીના પ્રવેયક વિમાને તેમજ અનુત્તર વિમાનના પણ જાણવા જોઈએ, અને પ્રભુના નિષેધાત્મક ઉત્તરે પણ એજ પ્રકારે સમજી લેવા नई से. (सू० १००)

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