Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिक
मूलम् - ईसीपब्भारा णं पुढवी सेया संखतल - विमलसोल्लिय - मुणाल - द्गरय- तुसार - गोक्खीर - हार - वण्णा उत्ताणय - छत्त-संठाण - संठिया सव्वजुणसुव्वण्णयमई अच्छा सहा
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टीका - - 'ईसीपन्भारा' इत्यादि । 'ईसीप भारा णं पुढवी' ईषत्प्राग्भारा खलु पृथिवी 'सेया' श्वेता 'संखतल - विमल - सोल्लिय - मुणाल - दगरय- तुसार गोक्खीर -हार-वण्णा' शङ्खतल-विमल - शौल्य- मृणाल - दकरज - स्तुषार- गोक्षीर-हार-वर्णा-तत्र - शङ्खतलं = शङ्ङ्खस्याधस्तनो भागः, विमलं निर्मलं शौल्य = श्वेतकुसुमविशेषः, मृणालं = कमलस्य कन्दः, तुषार : - हिमं - ' बर्फ' इति प्रसिद्धम्, हारः = मुक्ताहारः, शङ्खादिहारान्तानां वर्ण इव वर्णो यस्याः सा तथा, 'उत्ताणय-छत्त-संठाण - संठिया' उत्तानकच्छत्र - संस्थान - संस्थिता - उत्तानकम् = ऊर्ध्वमुखं–विस्फारितं यत् छत्रं तस्य संस्थानमिव संस्थानं तेन संस्थिता = युक्ता, 'सव्वज्जुणइ वा) लोकप्रप्रतिबोधना, १२ - (सव्व - पाण- भूय-जीव - सत्त - सुहावहा इ वा ) सर्वप्राणभूत जीवसत्त्वसुखावहा ।। सू० १४ ॥ 'ईसीपारा णं पुढवी' इत्यादि ।
(ईसीप भारा णं पुढवी ) यह ईषत्प्राग्भारा नामकी पृथिवी (सेया) सफेद है । इसकी उज्ज्वलता (संखतल- विमल-सोल्लिय मुणाल दगरय- तुषार गोक्खीर- हार - वण्णा) शंख के तलभागके समान, शुभ्रपुष्पके समान, मृणालके समान, कमलके समान, पानीकी बिन्दुओं के समान, बर्फ के समान, दुग्ध के समान, एवं मुक्ताहार के समान है । ये सब चीजें जिस प्रकार शुभ्र होती हैं उसी प्रकार यह भी शुभ्र है । (उत्ताणय-छत्त-संठाणसंठिया) शिर पर ताने हुए छत्र के समान इसका आकार है । (सब्वज्जुण - सुवण्णयमई
- भूय - जीव-सत्त - सुहावहा इ वा ) सर्व-प्राणु-भूत-लव-सत्त्व- सुभावडा (सू० १०४) 'ईसीप भारा णं पुढवी' इत्यादि.
(ईसीप भारा णं पुढवी ) या षित्याग्लाश पृथिवी ( सेया ) सह छे. तेनी उगवणता ( संखतल - विमल - सोल्लिय - मुणाल - द्गरय- तुसार - गोक्खीरहार - वण्णा ) शमना तजीयांना लाग नेवी उल्वज, शुभ पुण्य समान, भजना મૃણાલ જેવી, પાણીનાં બિંદુએના જેવી, ખરફના भेवी, દૂધના જેવી, તેમજ મેાતીના હાર જેવી ઉજ્જવળ છે. આ બધી ચીજો જેવી શુભ્ર ( धोणी ) होय छे तेवीन रीते या पाशु शुभ छे. ( उत्ताणय-छत्त-संठाण
- संठिया) शिर उपर मोटेसां छत्र समान तेना याअर छे. ( सव्वज्जुण
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