Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीयूषवर्षिणी-टी.स. १०५, ईषत्प्रारभारायाः स्वरूपवर्णनम्. लण्हा घट्ठा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिकंकडच्छाया समरीचिया सुप्पभा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ सू० १०५॥ मुवष्णयमई' सर्वार्जुनसुवर्णकमयी-सर्वेण सर्वावयवावच्छेदेन अर्जुनसुवर्णकमयी श्वेतकाञ्चनमयी, तथा-'अच्छा' अच्छा आकाशस्फटिकवत् , 'सण्हा' श्लक्ष्णा शुभपरमाणुस्कन्धरचिततया श्लक्ष्णा-सूक्ष्मतन्तुनिर्मितस्त्रवत् सूक्ष्मा, 'लण्हा' श्लक्ष्णा-घुण्टितवस्त्रवन्मसृणा, 'लट्ठा' लष्टा सुन्दराकृतिका, 'घट्ठा' घृष्टा घृष्टेव-खरशाणया शोधितपाषाणवत्, 'महा' मृष्टा-मृष्टेव-कोमलशाणया शोधितपाषाणवत्, ‘णीरया' नीरजाः, 'णिम्मला' निर्मला, गणप्पंका' निष्पङ्का-कर्दमरहिता. 'णिकंकडच्छाया' निष्कङ्कटच्छाया आवरणरहिता 'समरीचिया' समरीचिका=किरणसमूहयुक्ता, 'मुप्पभा' सुप्रभा शोभासम्पन्ना, 'पासाईया' प्रासादीया-प्रसादः प्रमोदः स एव प्रासादः, स प्रयोजनं यस्याः सा तथा, 'दरिसणिज्जा' दर्शनीया-दर्शनाय हिता, तां पश्यच्चक्षुर्न श्राम्यतीत्यर्थः, 'अभिरुवा' अभिरूपा= अच्छा सण्हा लण्हा घट्ठा मटठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिकंकडच्छाया समरीचिया सुप्पभा पासादीया, दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा) तथा यह संपूर्ण श्वेतकांचनमय है, आकाश एवं स्फटिक के समान स्वच्छ है, शुद्धपरमाणुस्कन्धों से रचित होने के कारण सूक्ष्मतन्तुओं से निर्मित वस्त्र के समान सूक्ष्म है, घुटे हुए वस्त्र के समान चिकनी है, घृष्ट है-खर शाण से घिसे हुए पत्थर के जैसी है, मृष्ट है, अर्थात्-कोमलशाण से घिसे हुए पत्थर के समान चिकनी है। नीरज-निर्मल है। कर्दमरहित है। आवरणरहित है। किरणों के समुदाय से सुरम्य है। शोभासे संपन्न है। प्रमोद प्रदान करने वाली है। दर्शनीय है। सुवण्णयमई अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिक्कंकडच्छाया समरीचिया सुप्पभा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा) तथा એ સંપૂર્ણ શ્વેત કાંચનમય છે, આકાશ તેમજ સ્ફટિકના સમાન સ્વચ્છ છે. શુદ્ધ પરમાણુસ્કંધોથી નિર્મિત હોવાને કારણે સૂક્ષમતંતુઓથી નિર્મિત વસ્ત્રસમાન સૂવમ છે, ઘંટિત-માંડ વિગેરેથી ઘસાયેલા વસ્ત્રની માફક ચીકણી છે, ધૃષ્ટ છે–ખરશાણુથી ઘસાયેલા પત્થરના જેવી છે, મૃષ્ટ છે–અર્થાત કેમશાણુથી ઘસેલા પત્થરના જેવી ચીકણું છે, નીરજ-નિર્મળ છે, કમ (४६१) थी २डित छ, शाला-सपन्न छ, प्रभाह (मान) मा पाणी છે, દર્શનીય છે, એને જેવાવાળાનાં નેત્ર એને જોતાં જોતાં ધરાતાં જ નથી, એ