Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 742
________________ पीयूषवर्षिणी-टीका स. ८३ केवलिसमुद्घात विषये भगवदगौतमयोः संवाद.६८१ समए लायं पूरेइ, पंचमे समए लोयं पडिसाहरइ, छठे समये मंथं पडिसाहरइ, सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ, पच्छा सरीरत्थे भवइ ॥ सू० ८३ ॥ मूलम्--से णं भंते! तहा समुग्घायं गए किं मणजोगं घातेन प्रसारितान् आत्मप्रदेशान् संहरति, तदाह-'पंचमे समये' इत्यादि । 'पंचमे समए लोयं पडिसाहरइ' पञ्चमे समये लोकं प्रतिसंहरति चतुर्भिः समयैर्जगत्पूरणं कृत्वा पञ्चमे समये आत्मप्रदेशान् अन्तरालावस्थितान् उपसंहरति । 'छटे समए मंथं पडिसाहरइ' षष्ठे समये मन्थानं प्रतिसंहरति । 'सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ' सप्तमे समये कपाट प्रतिसंहरति । 'अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ' अष्टमे समये दण्डं प्रतिसंहरति । 'तओ पच्छा सरीरस्थे भवइ' ततः पश्चात् शरीरस्थो भवति ॥ सू. ८३ ॥ टीका-'से णं भंते !' इत्यादि । ‘से णं भंते !.' अथ खलु भदन्त ! 'तहा ४ चार समय लगते हैं। सो ये सर्वप्रथम (पंचमे समए लोयं पडिसाहरइ) पंचम समय में अन्तराल में स्थित उन आत्मप्रदेशों को उपसंहृत करते हैं। (छठे समए मंथ पडिसाहरइ) छठे समय में मंथाकाररूप से स्थित उन आत्मप्रदेशों को संकोचते हैं। (सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरई) ७ वें समय में कपाटाकारता को और (अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ) आठवें समय में दंडाकारता को संकुचित करते हैं। (तओ पच्छा सरीरत्थे भवइ) उसके बाद आत्मस्थ हो जाते हैं। सू० ८३ ॥ ‘से णं भंते !' इत्यादि । (से णं भंते ! तहा समुग्घायं गए किं मणजोगं जुजइ) हे भदंत ! इस साथी पडतi (पंचमे समए लोयं पडिसाहरइ ) पांयम समयमा, अतरासमi २७ a मामशाना सा२ ४२ छे. (छ? समए मंथं पडिसाहरइ) છઠ્ઠા સમયમાં મંથાકારરૂપથી સ્થિત (રહેલા ) તે આત્મપ્રદેશને સંકેચે छ. (सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ) सातभा समयमा ४ारताने, मन (अदुमे समए दंडं पडिसाहरइ) 8भा समयमा ४२तान सथित रे छे. (तओ पच्छा सरीरत्थे भवइ) त्या२५छी मात्भस्थ 25 जय छे. (सू. ८3) ‘से णं भंते !' त्याहि. (से गं भंते ! तहा समुग्घायं गए किं मणजोगं जुजइ ?) 3 महन्त !

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