Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 749
________________ ६८८ औपपातिकसूत्रे समणजोगं झुंजइ ? गोयमा! सच्चमणजोगं जुंजइ, णो मोसमणजोगं जुंजइ, णो सच्चामोसमणजोगं जुंजइ, असच्चामोसमणजोगं पि जुंजइ ॥ सू० ८७॥ ___ मूलम्--वयजोगं जुंजमाणे किं सच्चवइजोगं जुजइ ? नाह-'गोयमा! सच्चमणजोगं जुजई' गौतम ? सत्यमनोयोगं युङ्क्ते, 'णो मोसमणजोगं झुंजई' नो मृषामनोयोगं युङ्क्ते 'णो सच्चामोसमणजोगं जुजइ' नो सत्यमृषामनोयोगं युङ्क्ते, 'असच्चामोसमणजोगंपि जुजई' असत्याऽमृषामनोयोगमपि युङ्क्ते ॥ सृ० ८७ ॥ टीका--गौतमःपृच्छति-'वयजोग' इत्यादि । 'वयजोगं जुजमाणे किं सच्चवइजोगं जुजई' वाग्योगं युञानः किं सत्यवाग्योगं युङ्क्ते ? 'मोसवइजोगं जुंजई मृषावामणजोगं जुजइ) वे केवली सत्यमनोयोग को प्रयुक्त करते हैं, (णोमोसमणजोगं जुजइ णो सच्चामोसमणजोगं मुंजइ, असञ्चामोसमणजोगं जुजइ) असत्यमनोयोग एवं मिश्रमनोयोग को प्रयुक्त नहीं करते हैं, किन्तु असत्यामृषामनोयोग को प्रयुक्त करते हैं, अर्थात् व्यवहार मनोयोग को प्रयुक्त करते हैं। सत्यमनोयोग एवं व्यवहारमनोयोग को वे केवली प्रयुक्त करते हैं, अन्य दो को नहीं ॥ सू० ८७ ॥ 'वयजोगं जुंजमाणे' इत्यादि । प्रश्न-हे भगवन् ! वे केवली जो (वयजोगं जुजमाणे किं) वचनयोग को प्रयुक्त करते हैं सेा क्या (सचवइजोग जुजइ, मोसवइजोगं जुजइ, सच्चामोसवइजोगं मुंजइ, असञ्चामोसवइजोगं झुंजइ) सत्यवचन योग को प्रयुक्त करते हैं, या असत्यवचनगौतम ! (सचमणजोगं जुंजइ) वणी सत्यमनायोगने प्रयुत ४२ छ. (णो मोसमणजोगं जुजइ, णो सच्चामोसमणजोगं झुंजह, असच्चामोसमणजोग झुंजइ) असत्यभनायोग तभी भिमनायागने प्रयुत ४२ता नथी; परंतु અસત્યામૃષામનગને પ્રયુકત કરે છે અર્થાત વ્યવહારમયોગને પ્રયુકત કરે છે. સત્યમનેયાગ તેમજ વ્યવહારમાગને તે કેવલી પ્રયુકત કરે છે. मीत मेने नलि. (सू. ८७) ___ 'बजोग जुजमाणे ' ४त्या. प्रल- लगवन् ! ते पक्षी २ (वयजोगं जुजमाणे) क्यनयोगन प्रभुत ४२ छ, तशु (सच्चवइजोगं जुजइ, मोसवइजोगं जुजइ, सच्चामो

Loading...

Page Navigation
1 ... 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824