Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 751
________________ ६९० औपपातिकम वा णिसीएज वा तुयट्टेज वा उल्लंघेज वा पलंधेज वा उक्खेवणं वा पक्वेवणं वा तिरियक्खेवणं वा करेजा, पाडिहारियं वा, पीढफलगसेज्जासंथारगं पञ्चप्पिणेज्जा ॥ सू० ८९ ॥ 'तुयहेज वा' त्वग्वर्तयति-शयनं करोति वा 'उल्लंघेज्ज वा' उल्लङ्घयति-गादिकं वा, 'पल्लंघेज वा' प्रोल्लङ्घयति वा, उक्खेवणं वा' उत्क्षेपणम् ऊर्ध्वगमनं वा, 'पक्खेवणं वा' प्रक्षेपण नीचैर्गमनं वा, 'तिरियक्खेवण वा' तिर्यक्क्षेपण तिर्यग्गमनं वा 'करेजा' करोति, 'पाडिहारियं वा पीढ-फलग-सेन्जा-संथारगं पञ्चप्पिणेज्जा' प्रतिहार्य वा पीठफलकशय्यासंस्तारकं प्रत्यर्पयति ॥ सू० ८९ ॥ 'कायजोगं जुजमाणे' इत्यादि। हे गौतम (कायजोगं जुजमाणे आगच्छेज वा चिद्वेज वाणिसीएज वा तुयटेज वा उल्लंघेज वा पल्लंघेज वा) इस काययोग को प्रयुक्त करते हुए वे आते हैं, जाते हैं, ठहरते हैं, उठते हैं, बैठते हैं, सोते हैं, करवट बदलते हैं, उल्लंघन करते हैं, प्रलंघन करते हैं, (उक्खेवणं वा पक्खेवणं वा तिरियक्खेवणं वा करेजा) उत्क्षेपण करते हैं, प्रक्षेपण-हाथपैर को ऊपर-नीचे करते हैं, तिरछे गमन करते हैं, (पाडिहारियं वा पीढफलगसेज्जासंथारगं पञ्चप्पिणेज्जा) काम निकल जाने के बाद प्रातिहार्यक पीठ, फलक, शय्या, एवं संथारे को पीछे देते हैं । सू० ८९ ॥ " कायजोग जुंजमाणे' प्रत्याहि. હે ભદન્ત ! કાયયોગ પ્રયુક્તિ કરતા કેવળી ભગવાન શું શું કામ કરે छ ? 8 गौतम ! ( ( कायजोगं जुजमाणे आगच्छेज्ज वा चिट्ठज्ज वा णिसीएज्ज वा तुयटेज्ज वा उल्लंघेज्ज वा पल्लंघेज्ज वा) से ययागने प्रयुत ४२॥ तस। माचे छ, तय छ, ४ाय छे, छे, मेसे छ, सुवे छे, ४२१८ मा छ, अवचन ४२ छ, धन ४२ छे. ( उक्खेवणं वा पक्खेवणं वा तिरियक्खेवणं वा करेज्जा) क्षेप रे छे, प्रक्षेप-डा५ या-नी॥ ४२ छ, तिरछ। (मा-मणु) गमन रे छ, (पाडिहारियं वा पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं पच्चप्पिणेज्जा) म थक गया पछी प्रतिकार्य थी, ३८४,शय्या, तभ सयाराने पाछ। भुडी हे छ. (सू. ८६)

Loading...

Page Navigation
1 ... 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824