Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिकसूत्रे मूलम्-से जे इमे गमागर जाव सण्णिवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा-सव्वकामविरया सव्वरागविरया सव्वसंगातीता सव्वसिणेहाइकंता अक्कोहा निक्कोहा खीणकोहा एवं माण
टीका-'से जे इमे' इत्यादि । 'से जे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसु मणुया भवंति' अथ य इमे ग्रामाऽऽकर यावत् संनिवेशेषु मनुजा भवन्ति, 'तं जहा' तद्यथा 'सत्यकामविरया' सर्वकामविरताः- सर्वकामेभ्यः समस्तशब्दादिविषयेभ्यो विरताः= निवृत्ताः, शब्दादिविषयेषु वा विरता=विगतौत्सुक्याः, 'सबरागविरया' सर्वरागविरताःसर्वरागात्-समस्ताद् विषयाभिमुखहेतुभूताऽऽत्मपरिणामविशेषात् निवृत्ताः, 'सव्यसंगातोता' सर्वसङ्गाऽतीताः-सर्वसङ्गात् मातापित्रादिसम्बन्धादतीताः विनिर्गताः-सर्वसङ्गरहिता इत्यर्थः, 'सबसिणेहाइकता' सर्वस्नेहातिक्रान्ताः स्नेहरहिताः, 'अकोहा' अक्रोधाः,
' से जे इमे' इत्यादि।
(से जे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसु ) ये जो ग्राम आकर आदि से लेकर सन्निवेश तक के निवासस्थानों में (मणुया भवंति) मनुष्य रहते हैं, (तं जहा) जैसे (सबकामविरया सव्वरागविरया सव्यसंगातीता सव्वसिणेहाइकंता) जो समस्त शब्दादिक विषयों से निवृत्त हैं, अथवा शब्दादिक विषयों में जिन्हें उत्सुकता नहीं हैं, समस्त विषयों की ओर झुकाने वाले आत्माके रागरूप परिणाम से जो निवृत्त हैं, मातापिता आदि समस्त संबंधिजनों से अथवा समस्तप्रकार के परिग्रह से जो दूर हो चुके हैं, जिन्हों ने सम्पूर्णप्रकार का स्नेहभाव परिवर्जित कर दिया है । (अक्कोहा णिकोहा खीण
‘से जे इमे' त्याहि. (से जे इमे)
२ २ (गामागर जाव सण्णिवेसेसु) ॥ २४२ साहिथी सधने सन्निवेश सुधीनां निवासस्थानामा (मणुया भवंति) मनुष्य २७ छ, (तं जहा) 243-( सव्वकामविरया सव्वरागविरया सव्वसंगातीता सव्वसिणेहाइक्कंता ) से समस्त शहाहि विषयोथी निवृत्त छ अथवा શબ્દાદિક વિષયમાં જેમને ઉત્સુકતા નથી હોતી, સમસ્ત વિષયની તરફ ખેંચવાવાળા આત્માના રાગરૂપ પરિણામથી જેઓ નિવૃત્ત છે, માતાપિતા આદિ સમસ્ત સંબંધી જનથી અથવા સમસ્ત પ્રકારના પરિગ્રહોથી જેઓ દૂર થઈ ગયેલા છે, જેઓએ સંપૂર્ણ પ્રકારના સ્નેહભાવને પરિવર્જિત કરી દીધેલ છે, (अक्कोहा णिक्कोहा खीणक्कोहा एवं माणमायालोहा ) भनी ओघ नष्ट ५४