Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 720
________________ पीयूषवर्षिणी-टी.सू.६५-६६ईर्यासमित्यदियुक्तसाधुविषयेभगवद्गौतमयोःसंवादः६५९ मूलम्-तेसि णं भगवंताणं एएणं विहारेणं विहरमाणाणं अत्थेगइयाणं अणंते जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जइ। ते बहुइं वासाइं केवलिपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता भत्तं पच्चमिताः गमनागमनादिषु समितियुक्ताः ‘भासासमिया' भाषासमिताः सन्तः, यावच्छब्दाद् गुप्तिगुप्ताः इति दृश्यम् ; 'इणमेव' इदमेव ‘णिग्गंथं पावयणं ' नैर्ग्रन्थं प्रवचनं 'पुरओकाउं' पुरस्कृत्य-प्रधानीकृत्य 'विहरंति' विहरन्ति । सू० ६५ ॥ टीका- तेसि णं' इत्यादि । 'तेसि णं भगवंताणं तेषां खलु भगवताम् अनगारभगवताम् 'एएणं' एतेन पूर्वोक्तेन 'विहारेणं विहरमाणाणं' विहारेण विहरताम् ' अत्थेगइयाणं' अस्त्येकेषाम् , 'अणंते' अनन्तम् अन्तरहितं 'जाव' यावत् 'केवळवरणाणदंसणे' केवलवरज्ञानदर्शनं 'समुप्पज्जइ ' समुत्पद्यते=अचिरेण प्रादुर्भवति । 'ते बहूई वासाइं ' ते अनगारा भगवन्तो बहूनि वर्षाणि ' केवलिपरियायं ' केवलिपर्यायं समिति आदि समितियों को तथा तीन गुप्तियों को पालन करते हैं । एवं इन समस्त क्रियास्वरूप जो निर्ग्रन्थप्रवचन है उसके अनुसार ही अपनी समस्त प्रवृत्ति चलाते हैं। सू. ६५ ॥ __ 'तेसिं णं भगवंताणं' इत्यादि। (तेसिं णं भगवंताणं एएणं विहारेणं विहरमाणाणं) इस प्रकार के इन अनगार भगवन्तों में जो निम्रन्थ प्रवचन को आगे करके विचरते हैं, (अत्थेगइयाणं) उन में से कितनेक अनगार भगवन्तों को (अणंते जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जइ) अनंत केवलज्ञान एवं अनंत केवलदर्शन उत्पन्न होता है । (ते बहूइं वासाइं केवलिपरियागं पाउणंति) वे इसी पर्याय में बहुत वर्षों तक इस पृथ्वीमंडल को पावन करते हैं, ભાષાસમિતિ આદિ સમિતિઓનું તથા ત્રણ ગુપ્તિઓનું પાલન કરે છે. તેમજ સમસ્ત ક્રિયાસ્વરૂપ જે નિર્ચન્જ પ્રવચન છે તેને અનુસરીને જ પિતાની समस्त प्रवृत्तिमा यसावे छे. (सू. ६५) 'तेसिं णं भगवंताणं, त्याहि.. (तेसिं णं भगवंताणं एएणं विहारेणं विहरमाणाणं) प्रारना । सन॥२ भगवानोमा के निधन्य प्रक्यनने भुज्य ४शन वियरे छे, (अत्थेगइयाण) तमाथी टा४ मन॥२ भगवानाने (अणंते जाव केवल-वर-नाणदसणे समुप्पज्जइ) मनात उशान तभ०४ मन उ न पन्त थाय छे. (ते बहूई वासाइं केवलिपरियागं पाउणंति) ते॥ २॥ ४ पर्यायमा घgi

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