Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिकसूत्रे पञ्चायति जीवा, सफले कल्लाणपावए। धम्ममाइक्खइ-इणमेव पुण्यपापे-जीवः सुचरितक्रियाभिः पुण्यम् , असुचरितक्रियाभिः पापं च स्पृशतिबध्नाति । 'पञ्चायति जीवा' प्रत्यायान्ति जीवाः तेनैव स्पृष्टेन बद्रेन--शुभाऽशुभकर्मसन्तानेन पुनर्जीवा उत्पद्यन्ते, 'भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः' इति नास्तिकवचनं न सत्यम् इति भावः । तत उत्पत्तौ सत्याम् ' सफले कल्लाणपाधए ' सफले कल्याणपापके-सौभाग्यदौर्भाग्यहेतुत्वात् पुण्यं पापञ्च शुभाशुभं कर्म सफलं भवतीति भावः । प्रकारान्तरेणापि धर्मोपदेशं भगवान् ददाति, तदेव संप्रत्याह-'धम्ममाइक्खइ' इत्यारभ्य 'पडिरूवे' प्राणी नरकनिगोदादिक का पात्र बनता है। (फुसइ पुण्णपावे ) जीव सुचरित क्रियाओं द्वारा पुण्य एवं असुचरित क्रियाओं द्वारा पाप का बंध करनेवाला होता है। (पञ्चायति जीवा) शुभाशुभ कर्मों से बद्ध हुआ जीव इस संसार में जन्ममरण के दुःखों को प्राप्त करता है, अर्थात् जबतक कर्म तति जीव में अस्तित्वविशिष्ट रहती है-जीव कर्मों से जबतक बंधा रहता है तबतक ही वह संसार में उत्पन्न होता रहता है। इस कथन से नास्तिक के इस वाद का कि-" भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः" अर्थात् जब देह भस्मीभूत हो जाता है तो पुनः उसकी प्रापि नहीं होती है-निराकरण हो जाता है। (सफले कल्लाणपावए) सौभाग्य एवं दौर्भाग्य के हेतु होने से पुण्य और पाप सफल हैं।
प्रकारान्तर से भी प्रभुने श्रुतचारित्र रूप धर्म का उपदेश दिया-इस बात को सूत्रकार-'धम्ममाइक्खइ' से लेकर 'पडिरूवे' यहाँ तक के मूलपाठ से प्रदर्शित करते
मुत्सित भी ४२वावा प्राणी न२४-निगाह माहिना पात्र मने छ. (फुसइ : पुण्णपावे) 4 सुथरित लिया। द्वारा पुष्य तेभ०८ मसुया२त लिया। द्वा२। पापना ५ ४२वावा थाय छे. (पच्चायति जीवा) शुभाशुभ थी मधाએલા જીવ આ સંસારમાં જન્મમરણનાં દુઃખને પ્રાપ્ત કરે છે. અથાત્ જ્યાં સુધી કર્મસંતતિ જીવમાં અસ્તિત્વવિશિષ્ટ રહેતી હોય છે-જીવ જ્યાં સુધી કર્મોથી બંધાયેલ રહે છે ત્યાં સુધી જ તે સંસારમાં ઉત્પન્ન થયા કરે છે. मा ४यनयी नास्ति ने मेवो वा “भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः" અર્થાત્ જ્યારે દેહ ભસ્મીભૂત થઈ જાય છે તે પછી વળી ફરી તેની પ્રાપ્તિ थती नथी. मानु नि।४२४ २५ लय छे. (सफले कल्लाणपावए) सोलाज्य તેમજ દૌર્ભાગ્યના હેતુભૂત હોવાના કારણે પુણ્ય અને પા૫ સફળ (ફળ આપना२२) छ.
બીજી રીતે પણ પ્રભુએ શ્રુતચારિત્રરૂપ ધર્મને ઉપદેશ આપ્ટેએ पातने सूत्र॥२-'धम्ममाइक्खई'थी सधन - पडिरूवे ' मी सुधीन भूणा