Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोयूषवर्षिणी-टीका सू. २१ अम्बडपरिव्राजकशिव्यविहारः
५५९ पुरिमतालं जयरं संपट्टिया विहाराए ॥ सू० २१ ॥
_. “मूलम्-तए णं तेसिं परिठवायगाणं तीसे अगामियाए छिण्णोवायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं कूलेणं ' गंगाया महानद्या उभयतः कूलेन उभयतटाभ्याम् , 'कंपिल्लपुराओ जयरामो पुरिमतालं जयरं संपद्विया विहाराए' काम्पिल्यपुरानगरात्पुरिमतालं नगरं संप्रस्थिता विहाराय-विहर्तुम् ॥ सू० २१॥
टीका-'तए णं' इत्यादि । 'तए णं' ततः खलु ‘तेसिं परिवायगाणं' तेषां परिव्राजकानाम् , 'तीसे अगामियाए ' तस्या अग्रामिकायाः-ग्रामसम्बन्धरहितायाःग्रामाद्दूरवर्तिन्या इत्यर्थः; 'छिन्नोवायाए' छिन्नावपातायाः जनागमनिर्गमरहितायाःनिर्जनाया इत्यर्थः; 'दीहमद्धाए' दीर्घाऽध्वायाः दीर्घमार्गायाः-प्रान्तरावस्थिताया इत्यर्थः; 'अडवीए' अटव्याः वनस्य 'कंचि देसंतरमणुपत्ताणं' किञ्चिद्देशान्तरमनुप्राप्तानाम् = महाणईए उभो कूलेणं) गंगा नदी के दोनों तटों से होकर, (कंपिल्लपुराओ जयराओ पुरिमतालणयरं संपट्ठिया) कांपिल्यपुर नगर से पुरिमताल नगर की ओर विहार के लिये निकले ॥ सू० २१ ॥
'तए णं' इत्यादि।
(तए णं) इसके बाद (तेसिं परिव्वायगाणं) उन परिव्राजकों का (तीसे अगामियाए अडवीए) जब कि वे चलते २ एक भयंकर अटवी में आ पहुँचे, जो ग्राम के सम्बंध से सर्वथा रहित थी-ग्राम से बहुत दूर थी, (छिन्नोवायाए) इसलिये यहां पर मनुष्यों का संचार बिलकुल ही नहीं था, अर्थात् वह अटवी निर्जन थी, (दीहमद्धाए) रास्ते इसके बड़े विकट थे, (कंचि देसंतरमणुप्पत्ताणं) इसका थोड़ा सा ही भाग इन्होंने तय कर पाया
५२ धने (कंपिल्लपुराओ जयराओ पुरिमतालणयरं संपट्ठिया) ४iveयपुर नारथी पुरिभतार नगरनी त२५ विडार भाटे नीxvil. (सू. २१)
" तए गं" त्याहि.
(तए णं ) त्या२ पछी (तेसिं परिव्वायगाणं) ते परिवार, (तीसे अगामियाए अडवीए) न्यारे यासdi यसतi से सय ४२ सटवी (न)मा मापी પહોંચ્યા કે જે વન ગામના સબંધથી સર્વથા રહિત હતું-ગામથી બહુ દૂર 6. (छिन्नोवायाए) तथा मही मनुष्योन। सयार मिस नहाता मेरो
a न निईन तु. (दीहमद्धाए) तेना २२ता महु वि४८ ता. (कंचि