Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
६१४
औपपातिकसूत्रे रित्ता सम्माणित्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलइस्संति, दलइत्ता पडिविसजेहिंति ॥ सू० ४७॥
मूलम्--तए णं से दढपइण्णे दारए बावत्तरिकलापंडिए नवंगसुत्तपडिबोहिए अट्टारसदेसभासाविसारए गीयरई काऽऽहं प्रीतिदानं दास्यतः, 'दलइत्ता' दत्वा 'पडिविसजेहिति' प्रतिविसर्जयिष्यतः ॥ सू० ४७॥
टीका--'तए णं' इत्यादि । 'तए णं से दढपइण्णे दारए ततः खलु स दृढप्रतिज्ञो दारकः 'बावत्तरिकलापंडिए' द्वासप्ततिकलापण्डितः 'नगमुत्तपडिबोहिए' नवाङ्गसुप्तप्रतिबोधितः-नवाङ्गानि द्वे श्रोत्रे, द्वे नेत्रे, द्वे घ्राणे, एका च जिह्वा, त्वगेका, मनश्चैकमिति, तानि सुप्तानीव सुप्तानि-बाल्यादव्यक्तचेतनानि तानि प्रतिबोधितानि यौवनेन व्यक्तचेतनावन्ति कृतानि यस्य स तथा । ' गीयरई 'गीतरतिः गानप्रियः, 'गंधव्य-णट्टविपुल रूप में जीविका के योग्य प्रीतिदान देंगे, (दलइत्ता पडिविसजेहिंति) और देकर उसे विसर्जित कर देंगे ॥ सू. ४७॥
'तए णं से दढपइण्णे दारए' इत्यादि ।
(तए णं) इस के बाद (से) वह (दढपइण्णे) दृढप्रतिज्ञ (दारए) कुमार (बावत्तरिकलापंडिए) बहत्तर कलाओं में पंडित (नवंगसुत्तपडिबोहिए ) एवं सुप्त नवांगों-२ कान, २ नेत्र, २ नासिका के छिद्र, १ जिह्वा, १ स्पर्शन इन्द्रिय और मन के प्रतिबोध-जागृति से युक्त-यौवनावस्था संपन्न होकर, (अद्वारसदेसभासाविसारए ) १८ देशों की भाषा का ज्ञाता होगा, (गीयरई गंधणट्टकुसले ) यह कुमार गीत में दलइस्संति) विYA ३५i विधाने योग्य प्रीतिहान सायरी. (दलइत्ता पडिविसज्जेहिंति) मने मापाने तेभनु विसन ४१ शे. (सू. ४७)
'तए णं से दढपइण्णे दारए' त्यादि.
(तए णं) त्या२ पछी (से) ते (दढपइण्णे) प्रतिज्ञ (दारए) उभार (बावत्तरिकलापंडिए) मोडतर ४ायामा पडित (नवंगसुत्तपडिबोहिए) तभ०४ सुस न१ अगा-२ आन, २ नेत्र, २ नासिडानां छिद्र, १ ० १ २५શન ઇંદ્રિય અને મનના પ્રતિબંધ-જાગૃતિથી યુક્ત-યૌવનાવસ્થ, સંપન્ન यधने (अट्ठारसदेसभासाविसारए) १८ देशोनी मापाने ज्ञाता थशे. (गीयरई