Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिकसूत्रे जणबोले इवा जणकलकले इ वा जणुम्मी इ वा जणुक्कलिया इ वा जणसपिणवाए इवा; बहुजणो अण्णमण्णस्त एवमाइक्खड़, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ; एवं खलु देवाणुप्पिया ! बोले इ वा ' जनानामव्यक्तो ध्वनिर्वा, 'जणकलकले ३ वा' जनकलकलो-जनानां व्यक्तवर्गात्मको नादः 'जणुम्मी इ वा ' जनोर्मि:=जन बाधः-तरङ्गवजनानामुपर्युपरि समागमनम् . 'जणुकलिया इ वा' जनोत्कलिका वा-जनानां लघुतरः समुदायः, 'जणसण्णिवाए इ वा ' जनसन्निपातः-जनानां संघर्षरूपेण संमिलनं भवति, तत्र-'बहुजणो' बहुजनः 'अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ' अन्योऽन्यमेवमाचष्टे-एकोऽपरं वदति सामान्यरूपेण, ' एवं भासइ' एवं भाषते वक्ष्यमागप्रकारेण विशेषतः कथयति ' एवं पण्णवेइ' प्रज्ञापयति-अपृष्टः सन् कथयति ‘एवं परूवेइ' एवं प्ररूपयति–पृष्टः सन् कथयति, मनुष्यों का एकत्र जमघट्ट होने लगा। (जणबोले इ वा) मनुष्यों की अव्यक्तध्वनि होने लगी। (जणकलकले इ वा) प्रगट रूप में कहीं २ मनुष्यों का कलकल अर्थात् स्पष्ट ध्वनि सुनाई देने लगी। (जणुम्मी इ वा) समुद्र के तरंग समान ऊपर के ऊपर लोगों के झुंड आने लगे। कहीं २ पर (जणुक्कलिया इ वा) सामान्य रूप से जनसमुदाय एकत्रित हुआ। (जणसण्णिवाए इ वा) कहीं २ पर मनुष्यों का इतना अधिक संघट्ट हुआ कि वे सब परस्पर में एक दूसरे से संघृष्ट होने लगे। इन सब में (बहुजणो) अनेक मनुष्य (अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ) परस्पर में एक दूसरे से इस प्रकार सामान्यरूप में कहने लगे, ( एवं भासइ) कोई २ इस प्रकार विशेषरूप से कहने लगे, (एवं पण्णवेइ) काई ४२१॥ या. (जणवूहे इ वा) मे भास माने पूछाय-मया माणु सोनु टोमे था सायु. (जणबोले इ वा) बानी भव्यत पनि था सी. (जणकलकले इ वा) प्रगटपे ४यां ४यां मनुष्योनी ४४४४ अर्थात २५ष्ट पनि समाप दासी. (जणुम्मी इ वा) समुद्रनां मानी पेठे ७५२१. ७५२ साना टणi qा दायi. (जणुक्कलिया इ वा) सामान्य३५ ४--- समुदाय मेत्रित था. (जणसण्णिवाए इ वा) ७ स्थाने मनुष्यो मेटा એકઠા થયા છે તે બધા પરસ્પરમાં એક બીજાની સાથે અથડાવા લાગ્યા. 20 धाम (बहुजणो) अने मनुष्य (अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ) ५२२५२मा मे भीगने म ४ारे सामान्य३५मा ४ दाया. (एवं भासइ) 8 ६ २॥ प्रारे विशेष३५मा वा साया, (एवं पण्णवेइ) आई 35 yoया