Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिकबत्रे चंपा णयरी सभितरबाहिरिया आसित्त जाव गंधवटिभूया कया, तं णिजंतु णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं अभिवंदिउं ॥सू० ४७॥
मूलम्-तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते बल'चंपा णयरी सभितरबाहिरिया' चम्पा नगरी साऽभ्यन्तरबाह्या 'आसित्त जाव गंधवष्टिभूया कया' आसिक्त यावद् गन्धवर्तिभूता कृता, 'तं णिज्जंतु णं देवाणुप्यिा' तन्निर्यान्तु खलु देवानुप्रियाः ! 'समणं भगवं महावीरं अभिवंदिउं' भगवन्तं महावीरमभिवन्दितुम् ॥ सू० ४७॥
टीका-'तए णं' इत्यादि । 'तए णं' ततः सेनापतिनिवेदनानन्तरं खलु ‘से कूणिए राया भंभसारपुत्ते ' स कूणिको गजा भंभसारपुत्रः 'बलवाउयस्स अंतिए' बलव्यापृतस्याऽन्तिके बलव्यापृतमुखात् 'एयमट्ट' एतमर्थ-'भवदाज्ञानुसारेण सर्व सम्पाहैं। (चंपा णयरी सभितरवाहिरिया आसित्त जाव गंधवट्टिभूया कया) तथा चंपानगरी भी भीतर बाहिर से अच्छी तरह झड़वाकर साफ करा दी गई है। उसमें जल भी छिड़कवा दिया गया है, यावत् वह सुगंधित द्रव्य जैसी बन चुकी है; (तं देवाणुप्पिया) अतः हे देवानुप्रिय ! ( समण भगवं महावीरं अभिवंदिउं णिज्जंतु ) अब आप श्रमण भगवान् महावीर को वंदना करने के लिये पधारें ॥ मू० ४७ ॥
'तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते इत्यादि ।
(तए णं) इसके बाद (भंभसारपुत्ते से कूगिए राया) भंभसार अर्थात् श्रेणिक के पुत्र कूणिक राजा (बलवाउयस्स) सेनापति के मुख से ( एयमद्रं सोचा ) हाथी आदि की તથા ચંપાનગરી પણ અંદર-બહારથી સારી રીતે વાળીઝૂડી સાફ કરાવી દીધી છે. તેમાં પાણી પણ છંટાવ્યું છે. જેથી તે સુગંધિત દ્રવ્ય જેવી બની
७ छे. (तं देवाणुप्पिया) माटे देवानुप्रिय ! (समण भगवं महावीरं अभिवंदिउ णिज्जंतु) वे २५ श्रम लापान महावीरने बहना ४२१। सा३ पधारे. (सू. ४७)
'तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते' त्यादि.
(तए णं) त्या२ पछी (भभसारपुत्ते से कूणिए.र.या) समसार मर्यात श्रेलिना पुत्र ४ि २०n (बलवाउयस्स) सेनापतिना भुमयी [एयमढे सोच्चा] साथी