Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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गोषवर्षिणो-टीका सू. ४८ कूणिकम्य स्नानविधानम् संवाहणाए संवाहिए समाणे अवगय-खेय-परिस्समे अट्टणसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मजणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्त-जाला-उला-भिरामे विचित्तमणि-रयणसेवाहनया मर्दनेन 'संवाहिए समाणे' संवाहितो=मर्दितः सन् , 'अवगय-खेय-परिस्समे' अपगत-खेद-परिश्रमः समपनीतखेदपरिश्रमः, 'अट्टणसालाओ' अट्टनशालातः व्यायामशालातः 'पडिनिक्खमइ' प्रतिनिष्क्रामति, 'पडिणिक्खमित्ता' प्रतिनिक्रम्य, 'जेणेव मजणघरं तेणेव उवागच्छइ यत्रैव मज्जनगृहं तत्रैवोपागच्छति, 'उवागच्छित्ता' उपागत्य, 'मजणघरं अणुपविसइ' मज्जनगृहमनुप्रविशति, 'अणुपविसित्ता' अनुप्रविश्य 'समुत्त-जाला-उला-भिरामे' समुक्त-जाला-ऽऽकुला-ऽभिरामे-समुक्तजालेन-मुक्तासहितेन जालेन गवाक्षेण आकुलो-व्याप्तः, अतएव अभिरामः-सुन्दरस्तस्मिन् , 'विचित्त-मणि-रयण-कुहिम-तले' विचित्र-मणि-रत्न-कुट्टिम-तले-विचित्रमणिरसजा की खूब मालिश की । जब राजा की अच्छी तरह से मालिश हो चुकी तब वे (अवगय-खेय-परिस्समे) परिश्रम एवं खेद से रहित हो ( अट्टणसालाओ) उस व्यायामशाला से (पडिणिक्खमइ) बाहर निकले, (पडिणिक्खमित्ता) निकल कर (जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ ) जहां स्नान घर था वहाँ पहुँचे । (उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ) पहुँच कर स्नानघर में प्रविष्ट हुए । ( अणुपविसित्ता) वहाँ प्रविष्ट होकर (समुत्त-जाला-उला-भिरामे ) मोतियों की लड़ियों वाले गोखलों से युक्त होने के कारण अति सुन्दर (विचित्त-मणिरयण-कुट्टिम-तले) तथा विविध मणियों से जटित
नापी (चउव्विहाए) यार प्रा२नी (संवाहणाए) मालिशथी (संवाहिए समाणे) રાજાની ખૂબ માલિશ કરી. જ્યારે રાજાની સારી રીતે માલિશ થઈ રહી त्यारे तसा (अवगय-खेय-परिस्समे) परिश्रम तभ मेथी भुत २७ (अट्टणसालाओ) ते व्यायामशालामांथा (पडिणिक्खमइ) मा२ नाsvel. (पडिणिक्खमित्ता) नीजीने (जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ) ज्यां स्नानघर तु त्यां पाया. (उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ) पडयाने स्नानघरमा ave यया. (अणुपविसित्ता) तभi मस धने (समुत्त-जाला-उला-भिरामे) मोतियानी सटिवाणा गोसायोथी युत डोवाना ॥२णे अतिसु२, (विचित्त