Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीयूषवर्षिणी-टीका. सू. ११ कूणिकवर्णनम् हिसित्ते माउपिउसुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे
खेमंधरे मणुस्सिदे जणवयपिया जणवयपाले जणवयपुरोहिए नीतिदयादाक्षिण्यादिभिः समृद्धः सम्पन्नः, 'मुइये' मुदितः प्रसन्नः, अथवा 'मुइये' इति निर्दोषमातृकार्थो देशीशब्दः। उक्तं ब 'मुइये जे होइ जोणिसुद्धे' इति । निर्दोषमातृकः -निर्दोषाया मातुरपत्यं पुमान । 'खत्तिए' क्षत्रियः-शुद्धक्षत्रियगोत्रोत्पन्नः । 'मुद्धाहिसित्ते' मूर्दाभिषिक्त:-सर्वैरपि प्रत्यन्तराजैः प्रतापमसहमानैर्नान्यथाऽस्माकं गतिरिति परिभाव्य मूर्द्धभिर्मस्तकैरभिषिक्तः सम्मानितो मूभिषिक्तः । 'माउपिउसुजाए' मातापितृसुजातः- मातृभक्तः पितृनिदेशकारको विनीतश्च 'दयपत्ते' दयाप्राप्त:-निसर्गकारुणिकः । 'सीमंकरे' सीमाकरः-सीमा कुलमर्यादा, तस्याः करः कारकः । 'सीमंधरे' सीमाधरः कुलमर्यादाधारकः 'खेमंकरे क्षेमङ्करः= लब्धवस्तुपालनशीलः । 'खेमंधरे' क्षेमधर:-क्षेमस्य धारकः, लब्धस्य परिपालनं क्षेमःचित्त रहा करते थे । अथवा निर्दोष माता के ये पुत्र थे। (खत्तिए) शुद्ध क्षत्रिय गंश में ये उत्पन्न हुए थे । ( मुद्धाहिसिते ) उनके प्रबल प्रताप को सहन करने में असमर्थ हो उनके राज्य की चतुर्दिश्वर्ती सीमाओं के राजा लोग उनके चरणों में अपना शिर नमाते थे। (माउपिउसुजाए ) यह माताके भक्त एवं पिता की आज्ञा के परमपालक थे । (दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे ) ये स्वभाव से दयालु थे, यह कुलमर्यादा के कारक थे, तथा उसका आराधक भी थे, लब्ध वस्तु के पालक एवं उसके धारक भी थे । अर्थात्-प्रजा-हित के योग्य . वस्तुओं को प्राप्त करते थे, और प्राप्त वस्तुओं का रक्षण करते थे, उन पर स्वयं
समृद्ध ता. ( मुइये) ते सहा प्रसन्नचित्त २॥ ४२॥ ॥ PAथा निर्दोष भाताना ते पुत्र ता. (खत्तिए ] शुद्ध क्षत्रिय शभा ते उत्पन्न च्या . (मुद्धाहिसिने ) तमना अमर प्रतापने सडन ४२वामा मसमर्थ, तभना રાજ્યની ચારેબાજુની સીમાઓના રાજાલકે તેમનાં ચરણોમાં પોતાનાં शि२ नभावता उता. (माउपिउसुजाए) ते भाताना मत, तभी पितानी माज्ञान। ५२ पास al. ( दयपत्तं सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे) તેઓ સ્વભાવે દયાળુ હતા. તેઓ કુળમર્યાદાનું પાલન કરતા કારવતા અને તેને આરાધક પણ હતા. મેળવેલી વસ્તુના પાલક તેમજ તેના ઘરાક પણ હતા. અર્થાત્ પ્રજાહિતને યેગ્ય વસ્તુઓને પ્રાપ્ત કરતા હતા અને પ્રાપ્ત