Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीयूष वर्षिणो-टीका. सू. २७ भगवदन्तेवासिवर्णनम्
भारंडपक्खीव अप्पमत्ता, कुंजरो इव सोंडीरा, वसभो इव जाय
व एगजाया' खड्गिविषाणमिवैकजाताः-खड्गी आरण्यजीवः-तस्थ विषाणं शृङ्ग, तदेकमेव भवति, तदिव एकजाताः-एकीभूता-रागादिसहायरहिताः, कुटुम्बादिसाहाय्यवर्जिता इत्यर्थः। 'भारंडप वीव अप्पमत्ता' भारण्डपक्षांचाऽप्रमत्ताः-भारण्डपक्षी-भारण्डश्चासौ पक्षी च भारण्डपक्षी, अवंद्रिजीवकस्त्रिचरणवान् द्वाभ्यां ग्रीवाभ्यां द्वाभ्यां मुखाभ्यां च युक्तः, द्वयोर्जीवयोरेकमेवोदरं भवति,तौ चात्यन्तमप्रमत्ततयैव निर्वाहं लभते। यदि कदाचिदैवात् तत्रैकोऽपि जीवः प्रमादं करोति, तदा उभयो शो भवति, तस्मात् सर्वदा चकितचित्तौ प्रमादरहितौ तौ तिष्ठतः । तद्वदप्रमत्ताः-तपःसंयमादिधर्मरक्षणे प्रमाद हिता इत्यर्थः । 'कुंजरो इव सोंडीरा' कुञ्जर इव शौण्डीराः-हस्तीव शूराः कषायादिरिपुभञ्जनशीलाः । 'वसभो इव जायत्थामा' वृषभ इव जातस्थामानः-जातं स्थाम-बलं येषां ते जातस्थामानः-वृषभवत्संजातपराक्रमा (गैंडा ) के सींग की तरह, ये रागादिकों की सहायता से रहित होने के कारण, एकस्वरूप थे। (भारंडपक्वीव अप्पमत्ता) भारंड पक्षी की तरह ये अप्रमत्त थे। यह पक्षी दो ववाला होता है। इसके तीन पैर होते हैं। ग्रीवा और मुख इसके दो होते हैं। उदर अर्थ । पेट एकही होता है । ये दोनों जीव अत्यंत अप्रमत्त होते हैं। यदि कदाचित् एक जीव प्रमाद करे तो दोनों का नाश होवे । इसलिये अप्रमत्तचित्त होकर ये दोनों बहुत ही सावधानी से रहते हैं। उसी तरह ये मुनिजन भी तप एवं संयमादिक धर्म के रक्षण करने में प्रमादवर्जित थे। ( कुंजरो इव सोंडीरा) कुंजर के समान ये कषायादिक के भंजन में शौण्डीर-शूरवीर थे। ( वसभो इव जायस्थामा) वृषभ के तमाशाहिनी सहायताथी २हित डावाने २णे, स४२१३५ हुता. (भारंडपक्खीव अप्पमत्ता) भार पक्षीनी पेठे तेस। मप्रमत्त उता. २॥ पक्ष में જીવવાળાં હોય છે. તેને ત્રણ પગ હોય છે. ડેક અને મુખ તેને બે હોય છે. ઉદર (પેટ) તેને એક જ હોય છે. તે બન્ને જીવ બહુ અપ્રમત્ત હોય છે. જે કદાચિત્ એક જીવ પ્રમાદ (ભૂલો કરે છે તે બન્નેને નાશ થાય છે. તેથી અપ્રમત્તચિન (ચતુર) થઈને તે બન્ને બહુ જ સાવધાનીથી રહે છે. તેવી જ રીતે એ મુનિજન પણ તપ તેમજ સંયમ આદિ ધર્મનાં રક્ષણ ४२पामा प्रभा२डित उता. (कुंजरो इव सोंडीरा) २ (डाथी)नी पेठे તેઓ કષાય આદિકના ભંગ (નાશ) કરવામાં શૌડીર–શૂરવીર હતા. ( वसभो इव जायत्थामा ) वृषमानी पेठे तेस। मलिष्ठ उता. ( सीहो इव दुद्ध