Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोयूषवर्षिणी-टीका. स. ३० कायक्लेशतपोवर्णनम
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वए ८, अवाउडए ९, अकंडुयए १०, अणिहए ११, सव्वगायपरिकम्म-विभूस-विप्पमुक्के १२, से तं कायकिलेसे। दण्डायतिकः ।६। 'लउडसाई' लकुटशायी-लकुटो-वक्रकाष्ठं तद्वच्छेते तच्छीलो लकुटशायी-उत्तामः सन् शयित्वा पाणिकद्वयं (एडी' इति भाषाप्रसिद्धद्वयं) शिरश्चेति त्रयं भूमौ स्थापयित्वा शेते तच्छीलः ।७। 'आयावए' आतापकः-आतापयति शीतोष्णादिभिर्देहं संतापयतिक्लेशयतीत्यातापकः; आतापना च सूर्यातपादिसहनम् ।८। 'अवाउडए' अप्रावृतकः-शीतकाले प्रावरणरहितः-सदोरकमुखवस्त्रिकाचोलपट्टातिरिक्तवस्त्ररहितः ।९। 'अकंडूयए' अकण्डूयकःकण्डूयनं-गात्रघर्षणं, तद्रहितः ।१०। 'अणिट्ठहए' अनिष्ठीवकः-निष्ठीवनरहितः ।११। 'सव्वगाय-परिकम्म-विभूस-विप्पमुक्के' सर्वगात्र-परिकर्म-विभूषा-विप्रमुक्तः सर्वस्य गात्रस्य परिकर्म-मार्जन विभूषा-विभूषणं च, ताभ्यां विप्रमुक्तः-त्यक्तसंमार्जनविभूषणः ।१२। 'से तं कायकिलेसे स एष कायक्लेशः। लकुट है । इस तरह होकर जो शयन करता है वह लकुटशायी है । ऊपर मुँह कर पहिले सोना पथात् दोनों पैरों की एडियों को एवं शिर को जमीन पर टेकना, इस प्रकार शरीर को अधर रखकर आसन करना 'लकुटशयनासन' है। (आयावए) आतापक-सूर्यादि की आतापना लेने वाला, (अवाउडए) अप्रावृतक-शीतकाल में सदोरक मुँहपत्तो एवं चोलपट्टा के अतिरिक्त अन्यवस्त्रों से रहित हो खुले शरीर से शीतको सहन करनेवाला अप्रावृतक है। (अकंडूयए) अकण्डूयक खुजली चलने पर भी शरीर को नहीं खुजलाने वाला अकण्डूयक है। (अणिट्ठहए ) अनिष्ठीवक-थूक आने पर भी नहीं थूकनेवाला अनिष्ठीवक है। (सबगाय-परिकम्म-विभूस-विप्पमुक्के) .. सर्वगात्रपरिकर्मविभूषाविप्रमुक्त-शरीर की सर्वथा शुश्रूषा-विभूवा नहीं करनेवाला सर्वगात्रपरिकर्मविभूषाविप्रमुक्त है । ( से तं कायલકુટ છે. એવી રીતે થઈને જે શયન કરે છે તે લકુટશાયી છે. ઉપર મેટું રાખીને પહેલાં સુવું, પછી બન્ને પગની એડીઓને તેમજ શિરને જમીન ઉપર ટેકાવવું–આ પ્રકારે શરીરને અધર રાખીને આસન કરવું તે “લકુટशयनासन' छ. (आयावए) मापात-सूर्य माहिनी मातापन देवा, (अवाउडए) मप्रावृत४-शातासभा हो।साथे मुंडपत्ती तभ०४ सालपट्टा सिवायनां બીજાં વસ્ત્રો રહિત થઈને ખુલ્લે શરીરે શીતને સહન કરવાવાળા અપ્રાકૃતક छ. (अकंडूयप) १४४-मुखी मातi. छdi ५२ शरीरने माणे नहि ५४५४ छ. (अणिट्ठहए) मनिष्ठी43-५४ मा॥ छतi ५ न ५४वावा मनिष्ठी५४ छ. (सबगाय-परिकम्म-विभूस-विप्पमुक्के) सर्वात्रा२४