Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुभदक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
दंतणविहिँ पच्चक्खाति ॥ २३ ॥ तदाणं तरंचणंः फलविहि. परिमाणं करेति-नन्नत्थ एगेणं खीरामलएणं, अवसेसं फलविहिं पच्चक्खाति॥ २४ ॥तयाणं तरंचणं अभिगणविहिं परिमाणं करेति-नन्नत्थ सयपाक सहस्स पागेहिं तेल्लेहिं अवसेसं अभिगण, विहिं पञ्चाक्खति ॥ २५ ॥ तयाणं तरंचणं उवणविहिं परिमाणं करेति-नन्नत्थ एगेणं सरहिणा' गंधवहिएणं. अवसेसं उवणविहं पञ्चक्खति ॥२७॥ तयाणं तरंचणं मंजण
विहिं परिमाणं करेति-नन्नत्य अट्ठहिं उट्ठितेहि उदगस्स घडेहिं, अवसेसं मजणनिहिं का दांतन उपरान्त दांतने के प्रत्याख्यान ॥ २३ ॥ तदनन्तर फलविधी का परिमाण किया-फक्त एक क्षीर आमला (गुठली विन बन्धा) अपर नाम रायण ( खिरनी.) उपरान्तः सर्व प्रकारे के फल का प्रत्याख्यान ॥ २४ ॥ तदनन्तर अभ्यंगन अंग को तेल मर्दन का प्रमान किया-फक्तः शतपाक सोद्रव्यों का बना और सहश्रपाक-हजार द्रव्यों का बना दोनों तरहके तेल उपरान्त अभ्यंगन के प्रत्याख्यान ॥२५॥ तदनन्तर उबट्टन-पीठी मर्दन की विधीका प्रमाण किया-फक्त एक कोष्टक गंध गोधूम (गहुके आटे के साथ) बट्टी बनाइ सुगंधी गोलीयों उपरान्त उद्दर्तन विधिके प्रत्याख्यान ॥ २६ ॥ तदनन्तर मंजन-मान विधिका परिमाण किया-फक्त आठ पानी के उदिष्टक घडे(कळश)उपरान्त स्नानमें पानी वापरनेके प्रत्याख्यान॥२ तब फिर वस्त्र का परिमाण किया-फक्त एक क्षोमयुगल जाति के कपास के कपडे उपरान्त अपर श्रेष
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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