Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 115
________________ 486 सामांच-उपाशक दशा सूत्र 488 एकाहिरण्य कोडीनिहाणपउत्ता, एक्कबुढीपउत्ता, एकपवित्थरपउत्ता, एगेवए दसगोसाहस्सिएणं वएणं ॥ तस्सणं अग्गिमित्ताणामं भारियाहोत्था ॥३॥ तस्सणं सद्दालपुत्तस्स आजीवि उवासयरस पोलासपुरस्प्त णगरस्स बहिया पंच कुंभकारावणसयाहोत्था, तस्सणं वहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा कल्लाकलिं यहवेकरएय, वारण्य, पिहडएय, घडएय, अधघडएय, कलसएय, अलिंजरएय, जंबूएय, उहियाओय करेंति, । अण्णेय से वहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तिवेयाणा, कलाकलिं तेहिं बहुहिं करएहिय जाच उट्टियाहिं थी, एक डिरम्य कोही व्यापार में थी, एक हिरन्य कोडी का पाथारा (बिखेरा ) था, दशहजार गौका एक वर्ग ऐसा एक वर्ग गौका था और उसके अग्निमित्रा नामकी भार्या थी ॥३॥ उस सद्दाल आजीविका उपाशक की पोलास पुर नगर के बाहिर पांचसो कुंम्हार की दुकानो थी, उस में बहुत । *पुरुषों को भोजन काविभाग दिया था, और पगार-वेतन देना ठेराया था, वे कालो काल बहुत करवे ( छोटे तूत्ती वाले लोटे). कराचा (बडे लोटे) घडे, आधे घडे, कलश, कुंडे, कोठी, जंबु (कुज्ज) 4 उदिय ऊटकी गरदन के आकार के घड़े इत्यादि और भी बहुत वरतनों बनाते थे, और अन्य बहुत पुरुषों भोजन के विभागी बेतन बाले उन बरतनो को ग्रहण कर श्रीक्ट चौवद यावत् राज्य पंथ में mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmma महोलपुत्र श्रावक का मप्तम अध्ययन 49 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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