Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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तं रायमगंसि वित्तंकप्पेमाणा विहरंति ॥ ४॥ तत्तमं से सद्दालपुत्ते आजीवितोवासए अण्णयाकयाइ पुवावरणकाल समयंसि (पाठान्तर-पुव्यरत्तवरत्त कालसमयंसि) जेणेव आसोगणिया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंतिय धम्म पण्णति उनसंपजित्ताणं विहरंति ॥५॥ तएणं तस्स सदालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एगेदेवं अंतियं पाउब्भवित्था ॥ ६ ॥ ततेणं से देवे अंतलिक्खपडिवन्ने सखिखिणि- . याइंवत्था जाव पवरपरिहिए सद्दालवुपुत्तं आजीविआवासयं एवं वयसी-एहीतिणं
देवाणुप्पिया! कल्लं इह महामाणे उप्पण्णणाण दंसंणधरे, तीयप्पडूप्पणमणागयं जाणए, पंचकर अपनी वृती-उपजीविका करते हुवे विचरते थे ॥४॥ तब वह सद्दालपुत्र अन्यदा किसी वक्त मध्यान में दो पार दिन की वक्त (पाठन्तर-आधीरात्रि व्यतीत हुवे ) जहाँ आशोक वाडी थी तहां आया, तहाँ आकर गोशाला मेखलीपुत्र का कहा हुवा धर्म अंगीकार करके विचरने उगा ॥५॥ तब उस सद्दालपुत्र आजिविका पंथी के पास एक देवता प्रगट हुवा ॥ ६ ॥ तब वह देवता आकाश में ऊभारहा घुघारीयों धमकाता (पजाता) हुवा प्रधान पंचवर्ण के वस्त्र धारन किये हुवा सद्दालपुत्र आजिवका उपासक से इस
प्रकार बोला-हे देवानुप्रिया! कल प्राप्तःकाल हुवे यहां महा माहन जिनो को केवल ज्ञान केवल दर्शन उत्पमा महुवा ऐसे जो अतीत-भूत काल,प्रत्युपन्न वर्तमान काल और अनागत-भविष्यकाल तीनो में काल के बानने वाले,
4. अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
काधक-राजावादरखसाखदवसहायजी ज्वालामसादनी
अर्थ
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